आओ सहिष्णुता का राग गाएँ
मीडिया के चौखानों में,
आओ व्यक्तिगत स्वार्थो की
गोटी फिट करें
सत्ता की शतरंजी बिसात पर,
आओ रोटी सेंके
हत्यारी भटकी गोली के
निशाने पर आए लेखक पर,
लेखक की उन रचनाओं पर
जिसने साँप के बिलों में पानी
भर दिया था।
लेखक के उस कथानक पर
जिससे घबराकर गीदड़
शहर की ओर कूच करने लगे थे।
लेखक की उन पुस्तकों पर
जो शीशे की अलमारी से कूद कर
लाइब्रेरी की भूल भुलईया को फांद कर
समाज में हल्ला बोल रहीं थी।
टीवी स्क्रीन पर चेहरे का फेशियल करा
नथुने फुला कर
कल लिया जाएगा उसका स्वाद !
और सरकाई जाएँगी
लेखक के संस्मरण की पुस्तकें
आग उगलते आलेख संग्रह
इसी प्रकरण रूपी कांड पर
राजनीति की खिड़कियों के मुहाने पर
फुसफुसाते हुए उन कानों को
जिनके हाथों में हैं
परितोषक से भरी अलमारी की चाभिया
सत्ता की निकट जाने की
छोटी-छोटी सीढ़ियाँ।
(लेखक कलबुर्गी की हत्या पर...)