1.
आँखें बोलती रहीं
होंठ की भाषा
अपलक निहारना - सकुचाना
झरने की चमक के साथ झिलमिलाना
झुका देना समर्पण के क्षितिज तक
आँखों ने होठों से शब्दों को हथिया कर
बातों के सिलसिले को आम किया
आँखों ने ही स्वागत - विदा
अनुभूतियों का अदान प्रदान किया।
2.
आँखों में वह काजल की महीन रेखा तुमने खींची थी
लक्ष्मण रेखा सी थी वह
जिसके अंदर धैर्य था
जिसके अंदर शालीनता सऊर बसी थी
स्नेह समर्पण था
और था जंगल में भी
पति के साथ निभाने का साहस
काजल की लक्ष्मण रेखा
आँखों में रखकर
इस महीन लकीर के पार
अपने सोच के कदम नहीं डाले
छलावे - भ्रम - दुविधा ने फैलाये असंख्य जाल निराले
मुखौटों ने भरमा न पाया
काजल की लकीर के अंदर से ही हमेशा मेरा साथ निभाया
सीता से भी ऊँचा अटल विश्वास बनाया
मैं उन आँखों में तुम्हें पढ़ता रहा जैसे पढ़ते हैं
रसिक प्रेम ॠचाएँ
जिज्ञासु ज्ञान कथाएँ
नास्तिक मन में पलने वाली अदृश्य आस्थाएँ।