hindisamay head


अ+ अ-

कविता

माँ-1

आनंद वर्धन


माँ सपने सी सुंदर
सपने चुनती है
रेशम जैसे कोमल
सपने बुनती है

भोर किरन हैं सखियाँ
माँ के सुख दुख की
बातें करती है उनसे माँ
गुपचुप सी

उसे पता है
कब बाबूजी जागेंगे
गुस्साएँगे जल्दी
दफ्तर भागेंगे

उनके दफ्तर के कागज
में, माँ रहती
डाँट, डपट गुस्सा खिजलाहट
सब सहती

भइया दिन भर दौड़
धूप कर आता है
माँ का आँचल खुला
उसे दुलराता है

खूब पसीना पोंछ पोंछ
खुश होती माँ
मिले नौकरी उसे
दुखी चुप रोती माँ

मुन्नी के बस्ते में
माँ का प्यार भरा
पढ़े लिखे हो बड़ी
और कुछ बने जरा

दिनभर थक कर
बड़ी रात में बिस्तर में
खुश खुश जाती
फैली रहती घर भर में

सपने देखा करती
सपने सुनती है
माँ सपने सी सुंदर
सपने बुनती है।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में आनंद वर्धन की रचनाएँ