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घर घर में फैल गई है खबर
नफरत का ज्वार चला सैर पर
लोगों के जंगल वीरान हैं
गलियाँ हैं सहमी, सुनसान हैं
खिड़की दरवाजों की झिरियों से
झाँक रही मुन्नी हैरान है
क्या हुआ अचानक चुप हो गया
कल तक तो बोल रहा था शहर
घर घर में फैल गई है खबर
नफरत का ज्वार चला सैर पर
ठीक ठाक बजते सुर ताल थे
लोग बाग सारे खुशहाल थे
दूर इमारत से आवाज उठी
गूँज उठे घंटे घड़ियाल थे
गोलियाँ चलीं, छूटे बम कई
नाच उठा यहाँ मौत का कहर
घर घर में फैल गई है खबर
नफरत का ज्वार चला सैर पर
बंद हुए लोग बंद घर हुए
दुआ कहाँ करें बंद दर हुए
यहाँ मिला करते थे जो गले
आज वे सभी इधर उधर हुए
लोग लिए खंजर स्कूलों में
मकतब हो गए सभी खंडहर
घर घर में फैल गई है खबर
नफरत का ज्वार चला सैर पर
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