घुन खाए पाँवों से नाप लूँगा पथरीली सड़क जा पहुँचूँगा उस पार लौह द्वार तक शिथिल पेशियों से जकड़ लूँगा तुम्हारी गर्दन पोपले मुँह में चबा लूँगा तुम्हारी अकड़ी हुई हड्डियाँ खाली हाथ में फिर भर लाऊँगा अपने बच्चों की किलकारियाँ...
हिंदी समय में असलम हसन की रचनाएँ