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असलम हसन


काश हर चेहरा किताब होता
कितनी आसानी से पढ़ लेता
हर दिल की इबारत और पहचान लेता
हर सूरत की ह़की़कत...
काश हर चेहरा किताब होता तो लफ्जों की
धूप छाँव में ढूँढ़ लाता जिंदगी,
भाँप लेता खिलखिलाते लोगों का दर्द
काश हर चेहरा किताब होता...
चुपके से देख लेता खामोश अदावत
नर्म व नाजुक लहजों की बारी़क साजिशें और
मुहब्बत भरी निगाहों से झाँकती हिकारत
शायद चेहरा किताब नहीं नकाब होता है
जिसमें छुपे होते हैं कई-कई चेहरे...


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हिंदी समय में असलम हसन की रचनाएँ