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कविता

एक स्त्री की आँच में

प्रेमशंकर शुक्ल


पछिल जाओ उलझनों
अभी -
एक स्त्री की आँच में हूँ

स्थगित कर गिरिस्ती की झंझटें
आई है अभी-अभी
मेरे पास
बज रही है मेरे सीने में
उसकी साँस
पछिल जाओ उलझनों
पछिल...

सान ली है हमने
एक-दूसरे में अपनी काया
एक शाश्वत-छंद में
घुलने लगी है हमारी देह
एक लय में लग गई हैं
हमारी साँसें
पछिल जाओ उलझनों
पछिल...

खाली कर दो अभी
इतना खाली -
कि एक स्त्री समो सके
मेरा अंतस्
पछिल जाओ उलझनो
पछिल...
अभी एक स्त्री की आँच में हूँ
 


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