कितनी मोहक होती है स्त्री की हँसी स्निग्ध-भरी हुई उजास से न जाने कितनी पीड़ाओं - दुखों को बरका फूटती है यह उजास स्त्री की हँसी : होती है सचमुच में अद्वितीय यह एक सुंदर संज्ञा की अत्यंत सुंदर क्रिया है रोशन किए अपनी ऊष्मा से हमारा आसपास
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ