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कविता

रात भर

प्रेमशंकर शुक्ल


स्टेशन पर
अपनी बेटी को
विदा करती
माँ ने कहा -
ठीक से जाना
जाते ही कर देना फोन
मन लगा रहेगा
बेटी ने सिर्फ ‘हाँ’ कहा
ढरक पड़े माँ-बेटी के आँसू

चल दी ट्रेन
माँ निहारती रही दूर तक
बेटी हाथ हिलाती रही
           
            ट्रेन चलती रही रात भर
            माँ जागती रही रात भर
            बेटी अरझ जाती रही रात भर
            कभी माँ की आँख से
            कभी अपने ही
            गंतव्य से।
 


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