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कविता

यहीं से

प्रेमशंकर शुक्ल


यहीं से देख रहा हूँ
तुम्हारी आँखों की महक
सुन रहा हूँ
तुम्हारा सुरीला ग्राम्य-गीत
अनुभव कर रहा हूँ
निकटतन

वह खूबसूरत चेहरा-मेरा अन्यतम प्रिय
कई छवियों में जड़ा
है मेरे कलेजे की पोथी में

इतनी रात -
तुम्हारे बालों में
मेरी इच्छा के जुगनू चमक रहे होंगे
और भीग रहा हूँ मैं
कुछ शब्दों के साथ यहाँ
रात की स्याही में
 


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