रोटी-पानी की मुश्किलें चाट गई हैं जिनके चेहरे का नमक जिनकी आँखों का गड्ढा और गहरा हुआ है और किनारा और स्याह जिनका न बचपने की तरह बचपना आया न हुए वे युवा की तरह युवा उनसे कैसे कहूँ कि यह अपने गणतंत्र का स्वर्ण जयंती वर्ष है?
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ