नर्मदा पर मुग्ध नर्मदा के किनारे एक युवती खड़ी है घुल रही है धीरे-धीरे उसकी काया निर्मलता-कोमलता बढ़ रही है उसके भीतर भीट पर अपनी साड़ी फेंक उसने पानी पहन लिया है
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ