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कविता

मुग्ध

प्रेमशंकर शुक्ल


नर्मदा पर मुग्ध
नर्मदा के किनारे
एक युवती खड़ी है

घुल रही है
धीरे-धीरे उसकी काया

निर्मलता-कोमलता
बढ़ रही है उसके भीतर

भीट पर अपनी साड़ी फेंक
उसने पानी पहन लिया है
 


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