अभी-अभी लिपी देहरी के लिलार पर उपटे हैं छोटू के पाँव इन पाँव में महक है मंजिल की दिशाओं को जगाने की उत्कंठा भी खूब इनमें।
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ