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कविता

एक स्त्री साथ है

प्रेमशंकर शुक्ल


उलझनों से उबार लेता
एक हाथ है

एक स्त्री साथ है
साधे हुए मेरी धरती-आकाश
जोड़े हुए अपनी आयु
मेरी आयु से
 


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