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सिनेमा

जनता की असली सच्चाई बयान करती ‘द सेवन समुराई’

विमल चंद्र पांडेय


महान फिल्म निर्देशक अकिरा कुरोसावा का लोहा पूरी दुनिया इसलिए नहीं मानती कि इनकी फिल्में अलग अलग विषयों पर हैं बल्कि उनकी फिल्मों की खासियत ये है कि वे बिलकुल अलग-अलग विषयों पर होने के बावजूद इनसान के उन गुणों और दोषों को आईना दिखाती हैं जो इनसान में साँस की तरह रहते हैं। ऐसे गुण दोष, ऐसी भावनाएँ जो समय और युग बदलने के साथ बदलती नहीं बल्कि ऊँच-नीच, जात-पात, अमीर-गरीब हर तरह के फर्क के बावजूद इनसान की नसों में अनवरत बहती रहती हैं। कितना भी वक्त बीत गया हो, इनसान की मतलबपरस्ती आज भी वैसी ही है जैसी सदियों पहले थी, उसका लालच, उसकी बहादुरी, प्रेम के प्रति पागलपन, ईर्ष्या में सबकुछ नष्ट कर देने की भावना और खुद को सबसे आगे रखने की भूख ऐसा शाश्वत सच है जो युगों और सभ्यताओं के अंतराल से जरा भी प्रभावित नहीं होता।

कुरोसावा की फिल्में इस मायने में पूरी दुनिया के लिए इन्साइक्लोपीडिया इसीलिए हैं कि उनके किरदार जिंदा इनसान हैं, पूरी तरह जीवंत। उनमें वह सारी कमियाँ हैं जो इनसानों में हमेशा से होती हैं बल्कि कुरोसावा उन कमियों को एक खराब वक्त के बरक्स सबसे तीव्र रूप में ले जाते हैं। 'रशोमन' इनसानी मन का जीवंत दस्तावेज है जो आज भी इनसानी मन को उतनी ही गहराई से पढ़ती है जितनी गहराई से दशकों पहले इसने पूरी दुनिया को भौंचक कर दिया था। जब बात 'द सेवन समुराई' की होती है तो सबको यही याद आता है कि इस फिल्म से प्रभावित होकर पूरी दुनिया में फिल्में बनी हैं और हिंदी में भी 'शोले', 'चाईना गेट' जैसी कितनी ही फिल्मों पर इस फिल्म का ही असर है। लेकिन इस फिल्म की सबसे खूबसूरत बात ये नहीं है। निस्संदेह फिल्म की कहानी, छायांकन और कुरोसावा का निर्देशन अद्वितीय है।

जापान के पुराने सामंती समाज के वातावरण में डाकुओं के हमलों से परेशान एक गाँव वाले कुछ योद्धाओं को एकत्र कर उन्हें डाकुओं के खिलाफ लड़ने को तैयार करते हैं। ये समुराई बिना मालिकों के घूम रहे हैं और इनकी आर्थिक हालत खराब है। एक समुराई की बहादुरी देखकर गाँव के लोग उसे डाकुओं से मुकाबला करने की इल्तिजा करते हैं और वह काफी नानुकुर के बाद उनका प्रस्ताव मान लेता है। उसके बाद एक के बाद एक योद्धाओं को जुटाने की तैयारियाँ होने लगती हैं और इसमें पहला समुराई कांबेयी (ताकाशी शिमुरा) यानि सबका लीडर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह अपने अलावा छह और योद्धाओं की एक टोली बनाता है जिसमें उसके अलावा चार समुराई, एक प्रशिक्षु योद्धा हैं और एक ऐसा सनकी कुकिचियो (तोशिरो मिफुने) है जो कांबेयी का शिष्य और बहुत बड़ा योद्धा बनना चाहता है।

ये समुराई समाज में हाशिए पर पड़े वे योद्धा हैं जो व्यक्तिगत लड़ाइयाँ लड़ते हैं और इन्हें इसके लिए पैसे देकर हायर किया जाता है। कांबेयी और कुकिचियो पूरी तरह से स्वभाव में अलग हैं और इन दोनों को ही फोकस में रखा भी गया है। कांबेयी जहाँ एक असली योद्धा है और हमेशा दिमाग से शांति भाव से काम लेता है वहीं कुकिचियो योद्धा बनने का ढोंग करता है और हमेशा पीकर बंदरों जैसी हरकतें करता रहता है। लेकिन कुकिचियो आखिर में खुद को अपनी बहादुरी से एक अच्छा योद्धा साबित करता है। कुकिचियो के रूप में मिफुने ने बेहतरीन और सारा आकर्षण चुराने वाल अभिनय किया है। रशोमन में डाकू की भूमिका में वे जितने नैसर्गिक लगते हैं उतने ही वह यहाँ भी अद्भुत रूप से नैसर्गिक हैं। जब कांबेयी उन्हें अपने साथ रखने से इनकार कर देता है तो वह एक योद्धा परिवार के खानदान का इतिहास लेकर आता है और बताता है कि वह कुकिचियो है। कांबेयी पढ़ता है और सभी योद्धा हँसते है।

इस बात से कुकिचियो पूरी तरह अनजान है कि उसमें जिस कुकिचियो का जिक्र है उसकी उम्र मात्र 13 वर्ष है। वह सबके हँसने के कारण से अनजान है। सभी उसे चिढ़ाते है और वह गुस्से में दौड़ता-दौड़ता बेहोश हो जाता है। आखिर कांबेयी उसे समुराई की तरह अपने साथ रहने की इजाजत दे देता है। वह अपनी योग्यता साबित करता है और सबको अपना मुरीद बना लेता है। कई योद्धा मारे जाते हैं और गाँव वालों को डाकुओं के आतंक से मुक्ति मिलती है। सारे ग्रामीण खेतों में खुशी के गीत गाते हैं और गाँव में शांति दिखाई दे रही है लेकिन, ठहरिए, असली बात इसके बाद है।

कुरोसावा इन सारी चीजों के साथ जो सबसे महत्वपूर्ण बात बताना चाहते हैं वो अब सामने आती है। योद्धाओं का काम खत्म हो चुका है और युद्ध के बाद जिंदा बचे समुराई खेतों के पास खड़े हैं लेकिन गाँव वाले उनसे बात तक नहीं कर रहे हैं। वे खुशी के गीत गा रहे हैं और योद्धाओं के बगल से बिना कुछ बोले निकल जा रहे हैं। उन्हें नजरंदाज करते हैं और अपने कामों में लग जाते हैं। कांबेयी अपने मर चुके योद्धा साथियों की कब्रों की ओर देखता हुआ एक समुराई से कहता है, "हम फिर हार गए हैं। ये जीत उनकी है।" वह खुशी के गीत गा रहे किसानों की ओर इशारा करता है। बाफ्टा और वेनिस पुरस्कारों के अलावा फिल्म को ऑस्कर में भी नामांकन मिले थे और इसे बहुत सारी सूचियों में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ दस फिल्मों में रखा गया है।


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