सूरज चाचू क्यों रूठे हो हमको जरा बताओ तो। कई दिनों से छुपे हुए हो घर से बाहर आओ तो। ठंड के मारे थर-थर काँपूँ गर्मी तनिक बढ़ाओ तो। सूरज चाचू क्यों रूठे हो हमको जरा बताओ तो।
हिंदी समय में मनोज कुमार गुप्ता की रचनाएँ