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कहानी

अगली शताब्दी के प्यार का रिहर्सल

अखिलेश


विपिन सिंह एडवोकेट के पास अच्छा बैंक-बैलेंस था। दिव्य मकान था। दो कारें थीं। विचारशील ठहरे, इसलिए उन्होंने कुछ फैक्टरियों के शेयर भी खरीद लिए थे। राजनीति में हाथ-पाँव मार ही रहे थे।

उनके एक पत्नी, एक रखैल और एक बेटी थी दीपा जो विपिन सिंह की इकलौती संतान थी। वह एम.ए. में पढ़ती थी। दीपा योग्य, चतुर सुजान और फैशन में डूबी हुई एक दक्ष लड़की थी। उसकी योग्यता का आलम यह था कि वह चुटुर-पुटुर संसार के हर विषय के बारे में जानती थी। जैसे कि वह भूगोल में जानती थी कि संसार का सबसे बड़ा टीला कौन है। या अर्थशास्त्र में जानती थी कि किस देश में कौन-सी मुद्रा चलती है। वह दावे से कहती थी, "मैं जिस कांपटीशन में चाहूँ, चुटकी बजाकर आ जाऊँ।" इसके बाद वह वाकई चुटकी बजा देती थी और कंधे उचका देती थी।

चतुर सुजान इतनी कि कोर्स की अच्छी और दुर्लभ किताबें सहेलियों की सब पढ़ लेती लेकिन अपनी किताबों के बारे में किसी को हवा नहीं लगने देती। परीक्षा के पहले वह जो पेपर आउट करती, अकेले हजम कर लेती मगर दूसरों से झपट लेती। चाहे इसके लिए उसे लड़कों को प्यार के दो बोल और लड़कियों को गिफ्ट ही क्यों न देनी पड़े। वैसे इसकी वह नौबत नहीं आने देती थी क्योंकि प्रायः वह अध्यापकों को ही प्यार के दो बोल और छोटी-मोटी गिफ्ट देकर परिपूर्ण हो जाती।

अब रही बात फैशन की, तो दीपा के क्या कहने। कोई सहेली या आंटी-भाभी क्रेप-डि-शान साड़ी का पक्ष लेती, तो वह उन्हें यह कहकर ध्वस्त कर देती कि मैसूर सिल्क का नाम बदल लेने से यह कोई नया फैशन थोड़े ही हो गया। वह ट्राउजर के साथ बुश कोट, मरजीना सलवार आदि को तो हँसकर उड़ा देती। वह जेनफोंडा की एरोबिक प्रस्तुति को बकवास कहती, तो बंबइया फिल्मों को ऊलजलूल। वह टाकीज में अंग्रेजी फिल्में देखती तो घर के वीडियो पर फार्मूला फिल्में। वह रविशंकर के संगीत की दीवानी थी, हालाँकि पल्ले कुछ नहीं पड़ता था। उसने कुरासोवा की कोई फिल्म नहीं देखी थी लेकिन उनकी फैन थी।

दीपा को बस तीन चीजों का अफसोस था। एक : उसे अंग्रेजी बोलनी नहीं आती थी, पढ़-समझ लेती थी मगर बोल नहीं पाती थी। दो : उसका कद छोटा था। तीन : इस शहर में स्वीमिंग पूल नहीं था। वह जब वीडियो में युवाओं को धड़ाम-धड़ाम कूदते और छपाक-छपाक नहाते देखती तो रोमांचित होकर उदास हो जाती।

लेकिन उसे उम्मीद थी कि आज नहीं, कल इस शहर में स्वीमिंग पूल होकर रहेगा। इसी तरह लंबाई बढ़ाने के लिए वह विटामिन ए के अलावा कई अन्य प्रकार की दवाओं एवं कसरतों का सहारा ले रही थी। रही बात अंग्रेजी की, तो कई बार उसने सोचा कि 'पंद्रह दिन में अंग्रेजी बोलना सीखें' स्कूल में दाखिला ले ले। पर ऐसा नहीं कर सकी, क्योंकि वह डरती थी, किसी दोस्त ने देख लिया वहाँ जाते, तो क्या होगा अपन का?

पिता को वह ज्यादा मानती थी, माँ को कम। पिता उसको 'बेटा' कहते और वह उनकी गरदन में बाँहें डालकर झूल जाती, 'ओ पा...पा...' एक बार माँ के साथ उसने ऐसा किया था, तो माँ ने झटक दिया था, "घोड़ी ऐसी हो गई है, ठीक से रह।" फिर उन्होंने पति से कहा, "अरे सुनते हो, तुम्हारी यह लायक पहाड़ जैसी हो गई है, इसके शादी-ब्याह की फिक्र करो अब।"

तब दीपा सिंह इंटर की छात्र थी। शादी-ब्याह सुनकर पहली बार उसके मन में प्यार का विचार कौंधा। उसने सोचा, अगर शादी-ब्याह करना है तो अभी से प्यार प्रारंभ कर देना चाहिए।

इतना सोचना था कि उसमें बदलाव आ गया, वह भाँति-भाँति से मुस्कराने लगी और शरीर को इधर-उधर उमेठने लगी। वह शीशे के सामने खड़ी हो जाती। छुप जाती और फिर खड़ी हो जाती। बालों को कभी वह किसी तरह झाड़ती, कभी किसी तरह। और कभी वह एकदम से बिखरा देती।

तब से अब तक वह तीन-चार प्यार कर चुकी थी। आखिरी प्यार उसका इसलिए विखंडित हुआ था कि लड़के के चेहरे पर यकायक मुँहासे निकल आए थे।

अब वह एम.ए. प्रथम वर्ष में पहुँच गई थी, अतः निर्णायक प्यार करना चाहती थी। यानी कि वह ऐसा प्यार करने की आकांक्षा से ओत-प्रोत थी जो विवाह में परिणत हो सके। हालाँकि वह इस बात पर भी भरोसा रखे थी कि पिता विपिन सिंह उसके लिए जो लड़के तलाश रहे थे, उसी में कोई दुरुस्त प्राप्त हो जाए तो भी चलेगा। लेकिन प्रेम-विवाह की कीर्ति से वह वंचित नहीं होना चाहती थी इसीलिए उसमें प्रेम की तमन्ना थी उसके प्रेम का आलम यह था कि वह निश्चय कर चुकी थी कि यदि पिता के रास्ते से हासिल किए गए पति से प्रेमी उन्नीस रहा तो वह पति के रूप में प्रेमी का ही वरण करेगी। हाँ, अब अगर बहुत ज्यादा फासला हुआ, तब की बात कुछ और है। तो इस प्रकार पिता जो इस बार एम.एल.ए. का टिकट पाने के लिए बेकरार थे, टिकट के साथ बेटी के लिए वर पाने की दिशा में भी सक्रिय थे और बेटी जी-जान से जुटी थी, एक प्रेमी को खोजने और पाने के लिए।

बी.ए. में दीपा के विषय थे : अंग्रेजी, मध्यकालीन इतिहास और भूगोल। तो वह इन तीनों विभागों में, साथ ही कुछ अन्य विभागों में आने-जाने लगी। वह सहेलियों से मिलने जाती और लड़कों की टोह लेती। अब उम्र के इस दौर में मुँहासे आदि का खतरा तो नहीं था पर क्या ठीक कि क्या हो जाए? वह फूँक-फूँककर कदम रख रही थी। चौकन्नापन और चतुराई उसकी नस-नस में समा गए थे।

जब दिल में चाह हो तो राह निकल ही आती है। कर्म करनेवाले का भाग्य ही साथ देता है। दीपा को प्यार हुआ जाकर जितेंद्र से।

जितेंद्र को प्यार के लिए सुपात्र पाने के कई कारण थे। मसलन उससे विवाह करते समय जाति-पाँति का कोई लफड़ा नहीं होना था क्योंकि वह उसी की कास्ट का था। दूसरे जितेंद्र के घरवालों की दशा कुछ खास अच्छी नहीं, तो खास बुरी भी नहीं थी। तीसरे वह ऐसा प्रखर बुद्धिजीवी था जो आई.ए.एस. की तैयारी भी कर रहा था। साथ ही कॉलेज के दिनों में बैडमिंटन का खिलाड़ी रह चुका था। वैसे आई.ए.एस. की दिशा में ही उसका भविष्य दुरुस्त दिखाई पड़ रहा था। क्योंकि पिछली और पहली बार ही इंटरव्यू तक पहुँच गया था। असफल होने पर उसने भाग्य को कोसा था और आगे के लिए पढ़ाई में जुट गया था। इस बार भी वह इंटरव्यू तक पहुँच गया था और उसमें सफल होने के लिए कमर कसकर भिड़ा हुआ था।

वह लंबा था, गोरा था और घनी मूँछोंवाला था। कुल मिलाकर पहली नजर में वह दीपा के लिए फिटफाट था।

जबकि जितेंद्र शुरू-शुरू में दीपा को अपने लिए फिटफाट नहीं पाता था। क्योंकि वह उसकी सुंदरता की कसौटी पर खोटी थी। इसीलिए दीपा द्वारा संकेत देने पर भी वह विमुख रहा पर बाद में उसने विचार बदला, थोड़ा बहुत रोमांस इससे भी कर लेने में हर्ज क्या है? और वह शुरू हो गया। पर जब उसे पता चला कि दीपा इकलौती संतान है और पिता बहुत धनी, साथ ही राजनीति में भी उनके सितारे चमकने के आसार हैं; तो विचारों में आमूल-चूल परिवर्तन आ गया, वह सचमुच दीपा से प्यार करने लगा।

प्यार के बारे में जितेंद्र की धारणा थी कि वह तभी सफल होता है जब प्रेमी प्रेमिका से श्रेष्ठ साबित हो जाए। लिहाजा दीपा को हीन सिद्ध करने के लिए उसने उसकी खामियों की खोजबीन शुरू की। उसकी पकड़ में दो सूत्र आए : लंबाई और अंग्रेजी। सौभाग्य से जितेंद्र की लंबाई और अंग्रेजी दोनों ही प्रशंसनीय थी। वह दीपा से रोज मिलता और रोज सलाह देता, अंग्रेजी बोलने की आदत डालो। वह यह कहने से भी बाज नहीं आता कि अगर तुम थोड़ी-सी लंबी होतीं, तो हमारी जोड़ी कितनी जमती।

इस प्रसंग से दीपा पहले तो खिसियाई फिर क्रुद्ध हुई, यह घोड़ा तो कुछ ज्यादा ही तेज दौड़ने लगा है। और उसे जितेंद्र में कुछ खराबियाँ नजर आने लगीं। जैसे, उसकी मूँछ में एक स्थान पर कुछ ज्यादा बाल हैं। उसके हाथ मुलायम नहीं हैं। फिर छोटे शहर से आया है, पता नहीं उच्च समाज के बारे में कुछ जानता-बूझता है या बस ऐसे ही... उसने एक दिन मुआयना किया। उसने जितेंद्र से पूछा, "पाप म्यूजिक में माइकेल जैक्सन और जान्सन में किसकी क्या चीज अच्छी लगती है?" वह हड़बड़ाया, आई.ए.एस. की तैयारी के सिलसिले में इन दोनों का नाम वगैरह जान गया था पर बारीक विश्लेषण से अनभिज्ञ था वह, तभी फिर प्रहार हुआ, "और राक म्यूजिक की दुनिया में ब्रूस स्प्रिंग्सटीन के यहाँ तुम्हारा फेवरिट क्या है?" इसी तरह उससे जान ट्रेवोल्स और रोजी रोज के बारे में पूछा गया। जब वह असफल रहा तो उसका मजाक बनाया गया। उससे यहाँ तक पूछा गया कि राब लोवे और ब्रुक शील्ड्स में कौन स्त्री है, कौन पुरुष? अंत में उससे कहा गया कि वह अभी सोसायटी की कल्चर को नहीं जानता, इसीलिए इंटरव्यू में असफल रहा। वह स्तब्ध और कुंठित था।

दीपा मुस्कराती हुई घर आ गई। घर में पापा का राजनीतिक जमावड़ा इकट्ठा था। दीपा इन खद्दरधारियों की बड़ी इज्जत करती थी क्योंकि उसका विश्वास था कि असली पावर इन्हीं लोगों के हाथ में होती है। सीनियर आई.ए.एस. तक को डाँट लगा देते हैं। वह आई.ए.एस. की तुलना में किसी हैंडसम मिनिस्टर से प्रेम करने को अधिक मान्यता देती लेकिन दिक्कत यह थी कि राजनीति में स्थिरता नहीं होती। आज इस कैबिनेट में कोई है, कल दूसरी कैबिनेट में नहीं है, आज पावर में है। कल अपोजीशन में। बाबा रे, यह बड़ा झंझटवाला काम है।

घर पहुँचकर वह बिस्तर पर गिर गई और मुस्कराने लगी। उसे बड़ा मजा आया था। होश ठिकाने आ गए होंगे मिस्टर के। उसकी आँखों के सामने जितेंद्र का उदास और खिसियाया हुआ चेहरा था। पहले वह खुश हुई फिर उसका मन पसीज गया। उसे जितेंद्र पर दया आ गई और उसकी अनुपस्थिति में भी उसे पुचकारने लगी। उसने सोचा, आखिर इतना बुरा नहीं है। अगर वह जैक्सन और जान्सन के बारे में अपना ठोस मत नहीं बना पाया है, तो कोई बड़ी बात नहीं। यह सब तो वह दो महीनों में सीख लेगा। मैं ही सिखा दूँगी। असल चीज है, आई.ए.एस.। उस रास्ते पर फिलहाल वह ठीक जा रहा है, सो चलेगा। उसने होंठ गोल कर लिए और सीटी बजाते हुए पैर हिलाने लगी। या पैर हिलाते हुए सीटी बजाने लगी। सीटी बजाती जा रही थी और जितेंद्र के प्रति उसकी दया बढ़ती जा रही थी, बेचारा...।

उसने तय किया कि कल उसे पुचकार देगी। कल पुचकारने के लिए उसने उसी क्षण योजना बनानी शुरू कर दी। उसने विचार किया कल कौन-सी ड्रेस पहननी है?

जब वह अगले दिन वही ड्रेस पहनकर जितेंद्र को मनाने पहुँची तो उसे कोशिश बिल्कुल नहीं करनी पड़ी। हुआ यह कि जितेंद्र ने मान लिया था कि दीपा द्वारा ली गई परीक्षा में वह अनुत्तीर्ण हो गया है। वह निश्चय कर चुका था कि बाजी उसके हाथ से निकल गई है। वह दुखी था कि सोने की चिड़िया हाथ से फुर्र हो गई। इसीलिए जब दीपा को अपने पास देखा और वह भी हल्का-हल्का मुस्कराते हुए देखा, तो उसकी बाँछें खिल गईं। उसने कंठ को भावुक बनाते हुए कहा कि वह उसे प्यार करता है। बहुत ज्यादा। उसने यह भी कहा कि अब वह मेहनत करके सब जान लेगा। और कि दीपा उसे माफ कर दे। दीपा ने उसका हाथ थपथपाकर कहा, "कोई बात नहीं।" वह खुश हुई कि अब यह उसे कद और अंग्रेजी की याद नहीं दिलाएगा। अब वह जीवन-भर दबकर रहेगा मुझसे। ऐसा ही पति तो वह चाहती है। शायद ऐसे ही किसी दृश्य की कल्पना करने के कारण वह मुस्करा उठी।

जितेंद्र ने पूछा, "तुम मुस्करा क्यों रही हो?"

दीपा ने मुँह चिढ़ा दिया, ऊँ...ऊँ जैसे कक्षा आठ या नौ तक की लड़कियाँ चिढ़ाती हैं। वह खुश हो गया। उसे खुश देखकर दीपा ने पर्स से चाकलेट निकाली, "लो खाओ।" वह खाने लगा तो दीपा ने पूछा, "इंटरव्यू के लिए तुम्हारी तैयारी कैसी चल रही है?"

"अच्छी चल रही है।"
"और अच्छी चलनी चाहिए।"
"ठीक है।"
"तुक आई.ए.एस. में आ जाओ, तो मैं पापा से तुम्हें मिलाऊँगी। हम शादी कर लेंगे।"
"जितेंद्र बुझे स्वर में बोला, "और यदि न आया तो पापा से नहीं मिलाओगी?"
"नहीं आओगे तो भी तुम्हारे पास एक चांस और रहेगा।"
"उसमें भी न आया तो?"
"तुम इस तरह सोचोगे तो सचमुच नहीं आओगे। तुम यह सोचो कि तुम्हें हर हालत में आई.ए.एस. ऑफीसर होना है। होना ही है। समझे।"
वह निरुत्तर हो गया। वह थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, "शादी के बाद दो महीने कुछ नहीं करेंगे। हम बस इंडिया घूमेंगे।"
"ठीक है।"
"पर तुरंत हमारे पास पैसे कहाँ से होंगे इतने?"
"तुम इसकी चिंता मत करो, पापा किसलिए हैं।"
"अच्छा! तुम्हारे पापा के पास क्या बहुत पैसा है?" वह चौकन्ना हो गया।
"और नहीं तो क्या?"
"कितना होगा?" वह सतर्क लापरवाही से बोला।
"तुम बतलाओ, कितना होगा?" उसके होंठ वक्र हो गए।
"चालीस-पैंतालिस लाख?"
"बस्स? इतना ही?"

'बस्स' सुनकर जितेंद्र की प्रसन्नता से छाती फूल गई। उसने कहा, "देखो दीपा, हमें शादी तो कर ही लेनी चाहिए। शादी के बाद आई.ए.एस. की तैयारी के लिए मुझे और अधिक शक्ति मिलेगी। तुम मेरी शक्ति हो दीपा।"

दीपा ने मन में कहा, 'अपने को बहुत चालू बनते हो बच्चू।' लेकिन ऊपर से वह बोली, "अभी शादी न ब्याह। अभी तुम्हें बस एक चीज देखनी चाहिए आई.ए.एस.।"

वह समझ गया दाल नहीं गलनेवाली। वह दुखी हो गया लेकिन उसने ठान ली कि जैसे भी हो, विपिन सिंह एडवोकेट की समस्त धन-दौलत को हड़पना है। आई.ए.एस. में आ गया तो वाह-वाह, नहीं तो भी चाहे जिस तरीके से, सब कुछ पा लेना है। लेकिन पाने का एक ही चारा था कि दीपा से विवाह हो जाए। पर यह मछली पानी से बाहर झाँकने तक का नाम नहीं ले रही थी। अगर वह आई.ए.एस. में न आया तो? या इसी बीच किसी आई.ए.एस. ऑफीसर से ही पट जाए तो? उसे पसीना आ गया।

वह इठलाती हुई दीपा को जाते हुए सूनी आँखों से देखता रहा। जब वह ओझल हुई तो उसमें आत्मविश्वास का संचार हुआ, उसने अपनी आत्मा से कहा, "मुझे अपनी बुद्धि पर भरोसा है। मैं कल से ही ऐसा दाँव-पेंच खेलूँगा कि आई.ए.एस. में आऊँ या न आऊँ, दीपा को शादी करनी ही पड़ेगी।' तो इसके लिए क्या किया जाए? उसे दो उपाय कौंधे, एक : अपने प्रेम की चर्चा को जगह-जगह फैला दिया जाए। यानी कि अपने साथ दीपा के नाम को इतना बदनाम कर दिया जाए कि उसके पास शादी कर लेने के सिवा कोई सूरत बचे ही न। दो : दीपा से शारीरिक संबंध कायम कर लिया जाए। और इस बात के सबूत भी सहेज लिए जाएँ। वह हँसा, तब तो उसके सम्मुख और कोई रास्ता ही नहीं होगा।

अगले दिन से ही वह अपने अभियान में जुट गया। उसने कुछ सत्य, कुछ कल्पना का सहारा लिया। कुछ खुद, कुछ दोस्तों को सक्रिय किया। नतीजतन विश्वविद्यालय से लेकर शौचालय तक में जितेंद्र-दीपा की जोड़ी मशहूर होने लगी। कुल मिलाकर जितेंद्र ने जनजीवन को यह विश्वास दिला दिया था कि वह और दीपा शादी होने से पहले शादीशुदा हैं।

जनजीवन और राजनीतिज्ञ का संबंध पानी और काई का होता है। इसलिए चर्चा उड़ते-उड़ते विपिन सिंह एडवोकेट के पास पहुँची, तो उन पर वज्रपात हुआ। क्योंकि वह इस हिकमत में थे कि दीपा की शादी किसी तरह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के भतीजे से हो, ताकि टिकट मिलने की उम्मीद और बढ़ जाए। इस जुगत के लिए वह काफी मशक्कत भी कर रहे थे। आशा थी कि अध्यक्षजी के भतीजे से दीपा की बात पक्की हो जाएगी।

लेकिन वह यह क्या सुन रहे हैं। उनकी बेटी ने यह क्या लफड़ा कर डाला। उन्होंने पत्नी से राय-बात की तो उन्होंने कहा, "ठीक तो है, अपनी जात है। घर-दुआर बढ़िया है। कर दो ब्याह।" अब वह कैसे समझाएँ पत्नी को। यह तो निपट गँवार है। उन्होंने सीधे बेटी से बात करनी मुनासिब समझा। वह बात करने के लिए उठकर जाने लगे कि कुछ छुटभैया नेता आ गए दरबार में। लेकिन उन्होंने उनसे बैठने को कहा और भीतर आ गए। वह हर हालत में बेटी से मामला रफा-दफा कर लेना चाहते थे।

बेटी ने सुना तो आँखें चमक गईं, हमारे चल रहे प्रेम में विद्रोह नहीं था। अब उसे भी होने का अवसर मिल गया है। वह विद्रोह कर बैठी, "पापा, मैं शादी करूँगी तो जितेंद्र से ही करूँगी।" वह थोड़ा डरी भी, अगर आई.ए.एस. में नहीं आया तो? खैर, उसने मोर्चा ले ही लिया था। उसने पाया, अभी जो कुछ पापा से कहा है, बड़ी बहादुरी की बात है। अतः वह बड़ी वीर है। वह इसलिए भी अध्यक्ष के भतीजे से विवाह के खिलाफ थी कि उसे एक बार पापा के पास देखा था। उसके बाल उड़ गए थे और तोंद निकल आई थी। वह हंड्रेड परसेंट भोंदू लगा था। कहने का मतलब जो भी हो, उसने विद्रोह कर दिया था और उसे बड़ा मजा आ रहा था। वह इन दिनों अपने आपको किसी प्रेम कहानीवाली बंबइया फिल्म की हीरोइन समझ रही थी। वह मस्त थी कि उसका प्रेम सार्थक हो गया। पर वह चैतन्य भी थी कि जितेंद्र को विद्रोह के इस प्रसंग की हवा बिल्कुल न लगने पाए क्योंकि खुदा न खास्ता वह आई.ए.एस. में न आया तो?

जितेंद्र था कि प्रेम को प्रचारित करने के सफल अभियान के बाद शारीरिक संपर्क की मुहिम में प्रयत्नशील था। वह इस परिणाम से भी संतुष्ट था कि प्रेम-संबंध के जगह-जगह खुल जाने का दीपा ने बुरा नहीं माना, बल्कि वह मगन थी कि उसका कितना नाम हो रहा था। वह कहती, तेरे-मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर। पर दूसरे मोर्चे पर बेड़ा पार नहीं हो रहा था। वह शारीरिक संबंध के मसले पर खटाई की तरह रूखी होकर अकड़ जाती थी। आध्यात्मिक प्रवचन करने लगती। कहती, "प्यार तो दो आत्माओं का मिलन होता है। बस्स।" इस 'बस्स' से वह निढाल हो जाता।

जैसे-जैसे इंटरव्यू की तिथि आती जा रही थी, दीपा की उत्सुकता और जितेंद्र की असहायता बढ़ती जा रही थी। वह अब उन्नीस घंटे पढ़ रहा था। वह दृढ़प्रतिज्ञ था कि इस बार आई.ए.एस. में आना हे और दीपा को पाना है। और विपिन सिंह एडवोकेट का घर-जमाई बनना है। वह उन्नीस घंटे पढ़ रहा था और भविष्य में इक्कीस घंटे तक पहुँचने के मंसूबे से लैस था। उसकी आँखें लाल रहतीं। वह सोता नहीं था और यदि सोता था तो दो तरह के सपने देखता। एक देखता कि वह ऐसा आई.ए.एस. है जो पोस्टिंग के पहले ही करोड़पति हो गया है। दोस्त आते हैं, तो वह पूछता है, 'आप किस देश की व्हिस्की लेंगे?' दूसरा स्वप्न वह देखता कि अखबार में उसका नाम नहीं है और दीपा ने हँसकर उस पर थूक दिया है। वह थूक को पोंछते हुए जग जाता और बिजली जलाकर पढ़ने लगता। वह साधू हो गया था। घनघोर तपस्या करके स्वर्ग की मंजिल तक पहुँचना चाहता था।

विपिन सिंह एडवोकेट भी बेचैन और परेशान थे। प्रत्याशियों की सूची जारी होनेवाली थी। पता नहीं क्या होगा? अगर पार्टी अध्यक्ष के भतीजे से बेटी का रिश्ता हो गया होता, तो टिकट पक्का था। वैसे उम्मीद कम नहीं। जितनी ताल-तिकड़म हो सकती थी, हो गई, अब फैसला भगवान के हाथ में। सभी की तरह विपिन सिंह को भी उम्मीद थी कि वह टिकट पाने के प्रबल दावेदार हैं। फिर भी उनमें रह-रहकर जितेंद्र के लिए क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ता था। यह कमीना न जनमा होता तो जो थोड़ी बहुत शंका है टिकट को लेकर, वह भी न रहती। पर धन्य है बेटी। धन्य है यह जितेंद्र।

दीपा साँस रोककर सब देख-परख रही थी। उसने जितेंद्र से मिलना-जुलना कम कर दिया था। कम क्या, लगभग बंद। कारण बताया था कि मिलने पर पढ़ाई से उसका ध्यान बँटेगा लेकिन असल में इसलिए कन्नी काट रही थी कि वह आई.ए.एस. में नाकामयाब हो तो छिटककर दूर हो जाने में मुश्किलों का सामना न करना पड़े।

इन दिनों वह पछतावे में थी। पछता रही थी और अपने दिमाग को कोस रही थी कि उसी एक से क्यों प्यार किया? माना कि प्यार एक से किया जाता है पर अन्य दो-चार लोगों से रब्त-जब्त तो बना सकती थी। निरी बुद्धू की बुद्धू रह गई। ऐसा होता, तो आज कितनी निश्चिंत होती। यह आई.ए.एस. में नहीं आया तो वह सही। वह नहीं आया, वह सही...। पर अब तो इसी पर फिलहाल सब्र करना था। वह भय से सिहर जाती, अगर नहीं आया इंटरव्यू में, तो फिर नए सिरे से किसी से अफेयर चलाना पड़ेगा। ओफ।

उसने निश्चय किया, ऐसी स्थिति में वह इकलौता प्यार नहीं करेगी, उसे पापा पर गुस्सा आ रहा था कि अपनी राजनीति में इस कदर डूब गए हैं कि बेटी की कोई फिक्र नहीं। एक बात चलाई भी तो उस भोंदू से। पर यदि पापा को टिकट मिल गया तो? पापा मिनिस्टर हो गए तो? पापा के डिपार्टमेंट में भी तो कुँवारे आई.ए.एस. होंगे, पर मिनिस्टर बनने में तो बड़ा टाइम लगता है, तब तक तो अपन का नहीं चल पाएगा। वह घबराहट और उदासी से भर जाती, फिर सोचती, बेमतलब परेशान हो रही है, अरे यह अपना जितेंद्र ही आ जाएगा, यही हो जाएगा आई.ए.एस.। जितेंद्र उसे बहुत प्यारा लगने लगता। कितना तो लंबा है वह, हाऊ हैंडसम! वह ईश्वर से प्रार्थना करती कि जितेंद्र को सफलता दे।

जितेंद्र ने अपने को पढ़ाई के कोल्हू में पूरी तरह जोत दिया था। वह जुता हुआ था। आहिस्ता-आहिस्ता इंटरव्यू की तिथि हाजिर हो गई। अधिकारी होने की अभिलाषा और ससुराल की संपन्नता ने उससे इंटरव्यू में धकाधक सटीक जवाब दिलवाए। इंटरव्यू देने के बाद वह वैसे निश्चिंत-सा हो गया था लेकिन अनहोनी भी हो सकती है यह सोचकर अगले चांस की तैयारी भी उसने शुरू कर दी। दीपा ने पापा से मिलवाने की बात पर कहा था कि यह चांस नहीं, तो अगला चांस। हालाँकि उसकी धारणा थी कि अगली बार की फजीहत में नहीं पड़ना पड़ेगा। इसलिए तैयारी करते हुए भी, मूलतः वह इंतजार कर रहा था।

वे सब इंतजार में थे। जितेंद्र इंटरव्यू देकर परिणाम की बाट जोह रहा था। देख रहा था आई.ए.एस. और पति एक साथ हो गया है। इस बात से फूल रहा था कि नौकरी और ससुराल दोनों से धन बटोर रहा था। अब उसे चिंता होनी शुरू हो गई थी कि पत्नी उतनी सुंदर नहीं है। पर वह चिंताओं को झटककर निश्चिंत हो जाता कि सुंदरियों की क्या कमी होगी उसे। राग-रंग की नौका पर सवार होकर आनंद के पानी में सैर कर रहा था वह। सचमुच उसका इंटरव्यू अच्छा हुआ था। पर कितना भी अच्छा हो, धुकधुकी की एक अविराम घड़ी उसके भीतर डोल रही थी। वह परेशान और प्रसन्न एक साथ था।

विपिन सिंह ने भी उम्मीदवार सूची की घोषणा के लिए पलक पावड़े बिछा रखे थे। वह विधायक, विधायक से मंत्री और फैक्ट्रियों के मालिक होने के स्वप्नदर्शी हो गए थे। खयालों का स्वेटर बुनते हुए देख रहे थे कि अपनी रखैल को एक मकान खरीदकर चाबी उसके हाथ में दे दी। वह सोचते, बीवी के बाल कटाकर कार चलाना सिखाएँगे। मोजूदा कार वही चलाएगी। अपने लिए गाड़ियाँ तो सरकारी होंगी। उन्होंने तय कर लिया था कि बेटी को राजनीति में उतारकर विरासत की वैतरणी पार लगाएँगे। शादी का क्या है, आई.ए.एस. से करेगी तो कौन बुरा है। इस बात से उन्हें बेटी पर प्यार आया और सोचने लगे जुगत करके उसकी शादी में पूरा प्रदेश मंत्रिमंडल जुटा देंगे। वह सुख के समंदर में गोताखोरी करते जा रहे थे। करते जा रहे थे...

बेटी थी, तो वह भी उत्तेजित। जितेंद्र ने बताया था, इंटरव्यू खासा ठीक हुआ है। सो उसने अभी से अपना नामकरण मेमसाब कर डाला था। वह खुश होती यह सोच-सोचकर कि सालों हो जाएँगे, कोई उसका नाम नहीं पुकारेगा। जिधर देखो, उधर 'मेमसाब' की धूम। अभी माली को डाँट रही है, अभी ड्राइवर को। इस पर गुस्सा हुई, उसको फटकारा। यहाँ वाद-विवाद प्रतियोगिता की निर्णायक है, तो वहाँ टूर्नामेंट में इनाम बाँट रही हैं। कहीं उद्घाटन कर रही है तो कहीं समापन। वह मुस्कराती, एक से एक लंबी औरतें उसकी चापलूसी कर रही हैं। वह उन पर बिगड़ रही है, झिड़क रही है कि चापलूसी क्यों करती हैं पर लंबी-लंबी औरतें हैं कि चमचागीरी से बाज नहीं आतीं। क्या मजे की बात है? पापा मिनिस्टर और जितेंद्र ब्यूरोक्रेट द ग्रेट। नहीं, वह जितेंद्र नहीं, जीतू बोलेगी। पर अपना यह जीतू फेल हो गया तो? डरकर उसकी आत्मा कुड़-कुड़ करने लगती। वह रोज ईश्वर का नाम लेकर अखबार खोलती, मुमकिन है कि रिजल्ट आया हो और उसमें उसके जीतू का नाम हो।

उस दिन अखबार खुला, तो आई.ए.एस. का नहीं, पापा का रिजल्ट था। उम्मीदवारों की अंतिम सूची। विपिन सिंह का पत्ता कटकर निर्जन में उड़ रहा था।

वह सन्न हुई और पापा के पास पहुँची। पापा कल से ही कमरे में बंद थे। कोई भी हो, भीतर आने से रोका था। पर दीपा थी तो दीपा, उसकी पुकार पर दरवाजा खुल गया। उनका चेहरा फूला था और आँखें लाल। दुख और अपमान की ज्यादा खुराक ने उनमें सूजन ला दी थी। बेटी को दखकर इतने कातर हुए कि फफक-फफककर रो पड़े।

दीपा ने कहा, "रोते नहीं, पापा, रोते नहीं, हौसला रखते हैं।"

वह बेटी के प्रति उदार हो गए। मुँह से निकला कि वह तैयार हैं, जितेंद्र से उसकी शादी के लिए।

दीपा पहले तो घबराई, पापा की तरह ही जीतू का भी रिजल्ट हुआ तो? फिर सँभल-सँभलकर बोली, "पापा, यह ऐसी बातों का वक्त नहीं। इस समय तो हम आपके चेहरे पर स्माइल देखना चाहते हैं। हँसो पापा। पाप्पाऽऽऽ।"

विपिन सिंह बरबस मुस्करा उठे, तब उसने सोचा, चलो तुरंत तो यह शादीवाली बला टली। जब तक पापा फिर पूछेंगे, जीतू का रिजल्ट आ जाएगा। देखो क्या रहता है उसमें? पास या फेल। उसका दिल धड़-धड़ करने लगा।

एक दिन पापा ने फिर कहा, "जितेंद्र से तुम शादी कर सकती हो। कब करोगी?" सुनकर दीपा फूट-फूटकर रोने लगी। वह घबड़ाए, "क्या हुआ... क्या हुआ?" दीपा परेशान, कैसे कहे कि जीतू आई.ए.एस. में नहीं आया, इसलिए नहीं करेगी शादी। रिजल्ट की याद से वह अधिक जोर से रोने लगी। पापा और घबड़ाए, "क्या हुआ... क्या हुआ?"

माँ भी आ गईं, "काहे को रोती है... काहे को रोती है?"

दीपा को लगा, वह व्यूह में फँस गई है। सवालों के तीरों से घिरी है और रास्ता अनजान। तभी वह चौंकी, चमकी और मुस्कराई। एक जवाब सूझ गया था। बोली, "पापा, मैं एम.फिल. करने के बाद करूँगी मैरिज।"

पापा बोले, "धत्तेरे की। बस इतनी-सी बात?"

मम्मी बोलीं, "हाँ...हाँ... और थोड़ी घोड़ी हो जा।" वह भुनभुनाती हुई वहाँ से खिसक गईं। पापा भी चले गए। उन्हें रखैल के पास जाना था।

अकेली रह गई। उसे जितेंद्र में खोट ही खोट नजर आए। चुप रहने पर कभी-कभी उसका मुँह खुला रहता है। कपड़े तो जाने कैसे पहनता है। कितना खराब कलरसेंस है उसका। आँखों के नीचे की हड्डी कितनी चौड़ी है। टाई नहीं लगाता, तभी तो आया नहीं इंटरव्यू में। कुछ ज्यादा ही लंबा है। चलता किस तरह है, चप्पलें घसीटते हुए। अंग्रेजी अच्छी है, चलो मान लिया पर उच्चारण? पब्लिक स्कूल के लड़कोंवाली बात कहाँ! थैंक्स गाड चलो अच्छा हुआ, बचा लिया तुमने मेरी लाइफ! चौपट होने से। दो ही नंबर से सही, आया तो नहीं आई.ए.एस. में। पर अगली बार आ गया तो? उसे लगा, जितेंद्र के साथ बेइनसाफी कर रही है। इतना बुरा नहीं, जितना वह समझ रही है।

उसने योजना बनाई, जितेंद्र को प्यार के झूले पर मद्धिम झुलाती रहेगी। अंग्रेजी, मध्यकालीन इतिहास और भूगोल विभागों में जाकर प्रतिभावानों को चाकलेट, टॉफी खिलाएगी। उनमें से कई से एक साथ चक्कर चलाएगी। पार्टियों में जाना ज्यादा होगा, वहाँ कुँवारे आई.ए.एस. को खोजेगी और पटाएगी, पटाकर ही दम लेगी। फ्रेंड की मार्फत पापा से कहलाएगी, इस बार के आई.ए.एस. की लिस्ट देखें और अपुन के लिए ट्राई मारें। आखिर पापा की प्रापर्टी भी कोई चीज है।

उसने निर्णय लिया कि देर ठीक नहीं, जुट जाना है पक्के इरादे से। कल से, मंडे से। कितना अच्छा दिन है। मंडे को फास्ट भी तो है उसका। उसे दृढ़ विश्वास था कि आई.ए.एस. से मुहब्बत की क्रिकेट में शिवजी और पापा नाम के अंपायर उसकी सेंचुरी जरूर बनवाएँगे।

अगले दिन जब जितेंद्र से मिलकर प्रेम से बोली, तो वह चकित हुआ। विस्फारित-सा बस देखता रहा दीपा को। उसे लगा, पाँचों उँगलियाँ घी में हैं।

उसने पाया कि गुंजाइश अभी है और मगन हो गया। मन-ही-मन कहा, "शादी हो जाने दो, तब गिन-गिनकर बदला लूँगा। ऐसा रुलाऊँगा, ऐसा रुलाऊँगा कि...'' उसकी इच्छा हुई कि ठहाका लगाकर हँसे।


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