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कविता

प्रेम करती औरतें

सोनी पांडेय


प्रेम करती औरतें
कभी प्रेम-पत्र नहीं लिखतीं
कभी प्रेमी से मन भर नहीं बतियातीं
या माँग काढ़ भरते हुए सिंदूर की रक्तिम लाली
नहीं भरतीं कामना से मिलन के...

प्रेम करती औरतें
प्रेमी के लिए नहीं सजती-सँवरतीं
वह बना कर रसोईं में
उसके पसंद का व्यंजन
राह तकती हैं
खुश हो लेती हैं तृप्त देख...,

प्रेम करती औरतें
अक्सर आँचल के कोर में
रखती हैं गाँठ कर प्रेम
गलती से नहीं खोलतीं कभी
छिपाए रहती हैं दुनिया से
खुद को भी रखतीं हैं भ्रम में
कि प्रेम ही जीवन है
या जीवन के लिए जरूरी प्रेम...

प्रेम करती औरतों के आँख में
समा सकता है प्रेम का समुद्र
वह सोख सकती हैं कोख में प्रेम की सारी नमी
वह एक साथ गा सकती है प्रेम और रुदन के गीत
सुनो! इतिहास...
वह प्रेम के मनके में अक्सर सजा कर राखी
बाँध आती है प्रेमी की कलाई पर
समेटे चली जाती है दुनिया से
प्रेम का सच...
तुम जब भी लिखोगे इतिहास,
जब भी तलाशोगे सत्य
जितना कर लो शोध
पर नहीं पढ़ सकोगे औरतों का मन
हे इतिहास! तुम हँसो
कि औरतें मुक्त हैं प्रेम के संदर्भ में
युधिष्ठिर के श्राप से...
 


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