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कविता

मेरे साथ चलते हुए

सोनी पांडेय


मेरे साथ-साथ चलते हुए
देते हो तुम भी अग्निपरीक्षा
जानती हूँ इस यात्रा में
सबसे मुश्किल है तुम्हारा सफर
तुम लीक से हट कर खड़े हो मेरे साथ
अलग हो उन सबसे जो निरा मर्दो की खाल ओढ़े रेंग रहे हैं लिजलिजी जमीन में
मेरे साथी! मैं आग का दरिया
तुम मलय पवन
कैसे सह लेते हो इतनी जलन?

मेरे साथ-साथ चलते हुए
जानती हूँ तनती हैं अनगिन तर्जनियाँ तुम्हारी तरफ
मुश्किल है झेलना अपने पौरुष पर लगे आक्षेप
कि थामें हो हाथ मेरा सबसे कठिन रास्ते पर
मेरे साथी! मैं सदियों से लहूलुहान धरती
तुम मलय पवन
कैसे सह लेते हो इतनी तपन?

मेरे रास्ते अलग हैं दुनियावी नियम से
ये रास्ते बनते हैं तोड़ कर
सारे व्रत और अनुष्ठान
भय छोड़ना पड़ता है
पाषाण प्रतिमाओं का
ये सब करते ही मैं घिरी हूँ
तर्जनियों की नोक पर
तुम सहज सरल
हर हर हहराते लहराते
मलय पवन
कैसे सह लेते हो
इतनी अगन?
 


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