वंशी में बाँधो मत
मैं तो अनकथ्य किसी गोपन की राधा हूँ
झूलूँगी झूला
कदंबों की डाल में।
महलों में घेरो मत
मैं तो अनटूट किसी सर्जन की सीता हूँ
धूप में तपूँगी
पैठूँगी पाताल में।
चित्रों में आँको मत
मैं तो अनदेख किसी अर्पण की संज्ञा हूँ
चंपा हूँ डलिया में
दियरा हूँ थाल में।
वंशी में बाँधो मत
मैं तो अनकथ्य किसी गोपन की राधा हूँ