क्या तिमिर कह जाता करुण ?
क्या मधुर दे जाती किरण ?
किस प्रेममय दुख से हृदय में
अश्रु में मिश्री घुली ?
किस मलय-सुरभित अंक रह -
आया विदेशी गंधवह ?
उन्मुक्त उर अस्तित्व खो
क्यों तू भुजभर मिली ?
रवि से झुलसते मौन दृग,
जल में सिहरते मृदुल पग;
किस व्रतव्रती तू तापसी
जाती न सुख दुख से छली ?
मधु से भरा विधुपात्र है,
मद से उनींदी रात है,
किस विरह में अवनतमुखी
लगती न उजियाली भली ?
यह देख ज्वाला में पुलक,
नभ के नयन उठते छलक !
तू अमर होने नभधरा के
वेदना-पय से पली !
पंकज-कली! पंकज-कली!
(सांध्य गीत से)