मैं अनंत पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बातें,
उनको कभी न धो पाएँगी
अपने आँसू से रातें !
उड़ उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक,
अमिट रहेगी उसके अंचल
में मेरी पीड़ा की रेख !
तारों में प्रतिबिंबित हो
मुस्काएँगीं अनंत आँखें,
होकर सीमाहीन, शून्य में
मंड़राएँगी अभिलाषें !
वीणा होगी मूक बजाने
वाला होगा अंतर्धान,
विस्मृति के चरणों पर आकर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण !
जब असीम से हो जाएगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव ! अमरता
खेलेगी मिटने का खेल !
(नीहार से)