ढुलकते आँसू सा सुकुमार
बिखरते सपनों सा अज्ञात,
चुरा कर अरुणा का सिंदूर
मुस्कराया जब मेरा प्रात,
छिपा कर लाली में चुपचाप
सुनहला प्याला लाया कौन ?
हँस उठे छूकर टूटे तार
प्राण में मँडराया उन्माद,
व्यथा मीठी ले प्यारी प्यास
सो गया बेसुध अंतर्नाद,
घूँट में थी साकी की साध
सुना फिर फिर जाता है कौन ?
(नीहार से)