अलि अब सपने की बात -
हो गया है वह मधु का प्रात !
जब मुरली का मृदु पंचम स्वर,
कर जाता मन पुलकित अस्थिर,
कंपित हो उठता सुख से भर,
नव लतिका सा गात !
जब उनकी चितवन का निर्झर,
भर देता मधु से मानस-सर,
स्मित से झरतीं किरणें झर झर,
पीते दृग - जलजात !
मिलन-इंदु बुनता जीवन पर,
विस्मृति के तारों से चादर,
विपुल कल्पनाओं का मंथर -
बहता सुरभित वात !
अब नीरव मानस-अलि गुंजन,
कुसुमित मृदु भावों का स्पंदन,
विरह-वेदना आई है बन -
तम तुषार की रात !