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कहानी

तारीख

शेषनाथ पांडेय


यह सर्दी की एक चढ़ती रात में हेमंत बाबू के अंदर उतरती हुई उदासी है। आज वे रिटायर हुए हैं। उन्हें खुश होना चाहिए था लेकिन वे रिटायरमेंट के बीत चुके और आने वाले वक्त के बीच किसी फाँस को निकालना चाह रहे हैं। वे अपनी गोद में लैपटॉप खोल कर बैठे है। उनके बगल में उनकी पत्नी सुधा लेटी हुई है। उनके मेल के ऐड्रेस बार में ananya50@yahoo.co.in लिखा हुआ है। वे मेल के पेज पर hi अनन्या लिखते हैं।

हेमंत बाबू बार बार कुछ लिखते है मिटाते हैं। फिर लिखते हैं - "रिटायरमेंट के दिन की रात कैसी होती होगी? तुम तो इस रात को गुजार चुकी हो अनन्या? मुझे फेसबुक से पता चला था जब तुम्हारे रिटायरमेंट पर तुम्हारे फेसबुक फ्रेंड्स तुम्हें नई जीवन, नई आजादी की शुभकामना और बधाई दे रहे थे और मैंने भी सत्रह मार्च की उस ढलती रात में बधाईनुमा एक मेल लिखा था। मैं तुम्हें अब तक हजारों बधाइयाँ तो भेज ही चुका होऊँगा? रिटायरमेंट के दिन की रात वाली मेरी बधाई कैसी लगी होगी तुम्हें?" इतना लिखने के बाद उन्हें फिर कुछ समझ में नहीं आता तो क्वेश्चन मार्क बढ़ाते जाते हैं। फिर वाइन की एक घूँट लेते हैं। एक सिगरेट जलाते हैं और आगे लिखते हैं -

"हाँ अनन्या मैं तुमसे एकदम यही पूछना चाह रहा हूँ कि रिटायरमेंट के दिन की रात कैसी होती होगी? उस लेखक-पत्रकार के लिए कैसी होती होगी जिसके पीछे कितना कुछ लिखना, करना छूट गया होगा? उस व्यक्ति के लिए वो रात कैसी होगी जिसके बगल में उसकी पत्नी उस नींद के साथ सोई हुई है कि कल से उसके पति को ऑफिस नहीं जाना होगा? उसे कहीं नहीं जाना होगा?

मैं अभी अपनी पत्नी की मधुर नींद को महसूस कर रहा हूँ। उसे लग रहा है कि मैं सितार या वीणा की तरह बज रहा हूँ और वो उस संगत में सो रही है। उसकी नींद कह रही है कि वो मेरे बाकी बचे सालों को अपने दामन से लपेट लेना चाह रही है। और मैं अपनी पूर्व प्रेमिका से पूछ रहा हूँ कि रिटायरमेंट के दिन की रात कैसी होती होगी? क्या यहाँ प्रेमिका कहना तुम्हें ज्यादा चुभ गया होगा या पूर्व प्रेमिका कहना?

मैं जानता हूँ सालों से भेजे गए मेरे पत्र और मेल तुम्हें वेध रहे होंगे इसीलिए उनका जवाब तुम कहीं अपने में डुबो ले गई हो लेकिन मैं तुम्हारी चुभन महसूस कर सकता हूँ। दिल्ली की सर्दी में यह चुभन और महसूस हो रही है। मेरे शहर मनाली की एक दिन की सर्दी तुम्हें याद है? या तुमने उस अड़तीस साल पहले की सर्दी से रिटायर ले लिया है या कत्ल कर दिया है उसका? चूँकि यह रिटायरमेंट के दिन की रात है इसलिए यह चुभन उदासी की धुंध रच रही है। और इस रात में बैठा मैं तुझमें उतर रहा हूँ ताकि धुंध से पार निकल पाऊँ। इसलिए कह सकता हूँ कि गहराई उदासी की हो या खुशी की उसमें जहाँ तक उतरा जा सकता है... उतर जाना चाहिए।"

हेमंत बाबू अभी इतना ही लिख पाते हैं कि उनकी पत्नी उठ के अलसाई हुई सी कहती है - " उम्म हूँ... क्यों उदासी में उतर रहे हो और उस बेचारी को भी उतार रहे हो? अब लिख दो कि रिटायर हो गया हूँ और तुमसे मिलने का काम ही रह गया है। मैं तुमसे मिलना चाह रहा हूँ।" हेमंत बाबू मजाक करते हैं - "ये भी लिख दूँ कि जो तुम्हारे साथ अब तक जी नहीं पाया वो जीना चाहता हूँ।" हेमंत की पत्नी करवट लेती है और अलसाई हुई सी उनके पैरों पर अपना पैर रखती है और कहती है कि - "अड़तीस सालों से तो वह तुम्हारे एक पत्र का जवाब नहीं दे पाई और तुम हो कि... क्या कहूँ तुमसे... फिर भी... अगर लिख सकते हो तो लिख दो।" इतना कह के वो इत्मिनान से सो जाती है।

हेमंत बाबू आगे लिखते हैं - "अभी पत्नी ने जो कहा उसका मतलब ये था कि मैं इधर उधर की बातें न कर के तुमसे मिलने की अपनी बेचैनी की बात करूँ और कहूँ कि तुम मुझसे मिलो। सुधा को पत्नी कहते हुए उतना ही खटकता है जितना तुम्हें प्रेमिका कहते हुए।" इस पर सुधा सोई सी अनमना जाती है... हेमंत बाबू कहते हैं - " लिख रहा हूँ बाबा, हर चीज का एक प्रोग्रेसन होता है।" सुधा वैसी ही निश्चिंत सोई रहती है। हेमंत बाबू आगे लिखते हैं -

"तुम यकीन नहीं करोगी। सुधा सो रही है लेकिन मेरा सब पढ़ रही है। मैं सोचता हूँ और उसका वो जवाब देती है। मैं तुम्हारी सरहद पर भटकता हूँ तो ये अपनी सहरा में बुला लेती है। मैं तुम्हारी भँवर में फँसता हूँ तो वह अपने सागर में खींच लेती है। मैं तुम्हें चाहता हूँ..." हेमंत बाबू आगे लिखना चाहते हैं कि - "और सुधा मुझे प्यार कर ले जाती है। कोई प्यार करने वालों से कब तक मुँह चुरा सकता है अनन्या? जबकि वो खुद प्रेम में डूबा हुआ है? मैं सुधा से प्रेम करता हूँ।"

हेमंत बाबू सुधा की बातों पर लाचार से दिखते हैं कि आखिर वो कैसे अपनी बात कहे। सुधा उठ के बैठती है - "किसे यकीन दिला रहे हो? अरे वो भी लेखिका है। और तुम मानते हो कि तुमसे अच्छी लेखिका है।" हेमंत बाबू पैग लेते हुए सुधा को कुछ पल तक देखते हैं। उनके देखने में एक सवाल है - "और तुम क्या हो?" सुधा लेटती हुई कहती है - "ये तो तुम जानते हो।" सुधा करवट बदलती हुई अपनी आँख बंद कर के रजाई अपने शरीर पर खींच लेती है।

हेमंत बाबू लिखते हैं - "मैं एक ऐसा लत्तर हूँ, जिसने तुम दोनों से लिपट कर अपना विस्तार पाया है। सुधा का स्वीकार मेरे विस्तार का आधार बन के खड़ा है और तुम्हारा अस्वीकार मेरे विस्तार को एक संशय देता है। मैं तुमसे मिलकर इस संशय से मुक्त होना चाहता हूँ।"

इतना लिखने के बाद हेमंत बाबू सुधा से कहते है - "आज तो पी लो आखिर ये मेरे रिटायरमेंट के दिन की रात है।" सुधा कहती है - "अब तुम भी बंद करो। दो पैग से ज्यादा हो गया है।" हेमंत बाबू पैग की आखिरी घूँट लेते हैं।

हेमंत बाबू मिलने की बात लिख कर सेंड का ऑप्शन क्लिक करते हैं और पेट पर लैपटॉप रख के रिलैक्स का अनुभव करते हैं। उनकी आँखें बंद होती हैं और नींद लग जाती है। सुबह आँख खुलते ही जब उनकी चेतना लौटती है तो हड़बड़ाए से अपना लैपटॉप देखना चाहते हैं। लैपटॉप बेड पर नहीं है। सुधा ने उठा कर टेबल पर रख दिया है।

हेमंत बाबू जल्दी जल्दी में लैपटॉप खोलते हैं और मेल चेक करते हैं। मेल में रिप्लाई देख कर उनकी हैरानी और खुशी बढ़ती जाती है लेकिन कुछ ही पल में वो हैरानी एक स्थायी भाव में बदलने लगती है। उन्हें लगता है एक दिन तो ऐसा होना ही था। ठीक वैसे ही जैसे कल उनको रिटायर होना था और वो हो गए थे। वे सोचते हैं क्या लंबी प्रतीक्षा भी एक स्थायी भाव में बदल जाती है? तभी सुधा हाथ में अखबार लिए आती है और कहती है - "अगर ऐसा भाव तुम्हारे मन में है तो तुम्हें नहीं जाना चाहिए।" हेमंत बाबू चकित हो कर सुधा को देखते है और पूछते हैं - "तुमने पढ़ा वो मेल उसने कहाँ बुलाया है मिलने के लिए? मनाली के मेरे घर पे जहाँ पर मैं उससे आखिरी बार मिला था..." सुधा कुछ बोलती नहीं खिड़की से परदे हटाती है और अखबार देखने लगती है।

हेमंत बाबू चहकते हुए उठते हैं और सुधा से कहते हैं कि - "प्लीज तुम कुल्लू के लिए फ्लाइट देखो। एक महीने वो शिमला में रहेगी। चार दिन बाद तो वह आ ही रही है। एक दिन पहले चल चलेंगे। इसी बहाने घर वर की थोड़ी सफाई भी कर लेंगे। सुधा अखबार को किनारे रखती है - "तुम बहुवचन में क्यों बोल रहे हो? चलेंगे...। सफाई कर लेंगे।" हेमंत हैरानी से देखते हैं - "क्यों तुम नहीं चलोगी?" सुधा अपनी हैरानी बढ़ाते हुए पूछती है - "मैं क्यों चलूँगी?"

हेमंत बाबू के सामने यह सवाल कुछ इस तरह से सामने आता है जिसका जवाब उनके पास नहीं है। वे पल भर के लिए रुकते हैं। उन्हें लगता है कि इस सवाल का सामना उन्होंने थोड़ी देर और किया तो वे हमेशा के लिए रुक जाएँगे। इसलिए वे सुधा के हाथ से अखबार लेकर उसको लैपटॉप देते हैं और कहते हैं कि - "अड़तीस सालों से चलती आई हो मेरे साथ तो अब किसलिए नहीं चलोगी? अगर अड़तीस सालों का कुछ भूल सुधार करना चाहती हो? ऐसा है तो मत चलो।"

सुधा कुछ कहने के बजाय अनन्या की मेल देख रही है। हेमंत बाबू सुधा की हामी जानना चाह रहे हैं - "सुधा प्लीज।" सुधा लैपटॉप पर एक ट्रेवल ट्रिप का नया पेज खोलती है और कहती हैं - "अच्छा तो यही होगा कि हम आज कल में ही निकलते हैं। तुम्हारा बर्थ डे इस बार वही मनाते हैं।" हेमंत बाबू सुधा को चूमते हुए बाँहों में भर लेते हैं।

हेमंत बाबू जैसे जैसे मनाली की तरफ बढ़ रहे थे उनके अंदर कुछ भीगता जा रहा था। उन्हें लग रहा था उनके जेहन का कोई सोत जो सूख गया था, उसमें से एक धारा फूट पड़ी हैं। वे खिड़की पर केहुनी जमाए पेड़ो, पहाड़ों और मनाली के रास्तों में जैसे घुलते जा रहे हैं। उधर सुधा भी दूसरी खिड़की पर अपलक उन्हीं दृश्यों में डूबी हुई है। हेमंत बाबू सुधा के और करीब जाते है और कहते हैं - "तुम क्यों इतनी खुश हो? आखिर वो तुम्हारी सौत भी तो हो सकती है?"

सुधा प्यार से हेमंत बाबू को देखती है और कहती है - "अड़तीस सालों के इंतजार के बाद अपने प्रेमी को मिलते हुए देखना दिलचस्प भी तो हो सकता है?" हेमंत बाबू सुधा के कंधे पर हाथ रखते हुए सामने की तरफ देखते हैं। उनकी पलकों पर आँसुओं का बोझ बढ़ने लगा है - "मुझे डर लग रहा है। इतना डर लग रहा है कि मैं चाहता हूँ तुम्हारे साथ लौट जाऊँ।" सुधा हेमंत बाबू के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहती है - "अगर उसका मिलने के लिए हाँ कह देना ही तुम्हारा हासिल था तो तुम लौट जाओ।" हेमंत बाबू की आँखें भीग गई हैं। वो सुधा को अपने सीने से लगाते हुए उसके बालों में अपनी ऊँगलियाँ फँसा देते हैं।

हेमंत बाबू मनाली के अपने घर में पुरानी पड़ चुकी चीजों को सहेज रहे हैं। किताबों को झाड़ रहे हैं और सूरज पहाड़ों के पीछे चला गया हैं। वे अलमिरा खोलते हैं उसमें पुराने पड़ चुके कागज और पत्रों को देख रहे हैं। उनके चेहरे पर पुरानी बातों से जुड़ने का एक सिरा मिल गया है। उनके चेहरे पर छूट चुके को पाने की खुशबू महक रही है।

पुरानी चीजों को उलटते पलटते अचानक उनके हाथ में एक पुरानी कहानी लगती है। उनकी चेहरे की खुशी और महक उठती है। वे कहानी पढ़ना शुरू करते हैं तो थोड़े चकित होते हैं कि उन्होंने ये कहानी कब लिखी थी? वे कहानी के पन्ने को इधर उधर पलट कर देखते हैं तो आखिरी पन्ने पर उनके साइन के साथ सत्रह मार्च उन्नीस सौ अठहत्तर लिखा हुआ था। अब उन्हें थोड़ी थोड़ी कहानी याद आने लगती है। वे थोड़े और खुश होते हुए सुधा से कहते है - " अरे देखो मेरी एक पुरानी कहानी मिल गई। पता नहीं मैंने इसे छपने के लिए क्यों नहीं दिया था। जबकि कहानी अच्छी लग रही है।" हेमंत बाबू कहानी पढ़ते हुए पैग की तरफ बढ़ते हैं। - "ओह गॉड !!! क्या इत्तफाक है ! कहानी का नायक भी रिटायरमेंट के बाद अपनी प्रेमिका से मिलने जा रहा हैं।" सुधा कहती है - "इस संयोग पर तुम्हें हैरान होना चाहिए और तुम हँस रहे हो?"

हेमंत बाबू सुधा की बातों पर अपनी हँसी को अपने शारीरिक मुद्राओं में उलझा देते हैं और कहानी को हाथ में लिए जोकर की तरह वाइन की बोतल के पास जाते हैं और अपना पैग बनाते हुए हर बार की तरह सुधा से पूछते हैं - "तुम्हारे लिए भी बना दूँ? तुम्हारे लिए जो कल दिलचस्प हो सकता है। उसकी शुरुआत आज रात से ही हो जाएगी।" सुधा कुछ कहती नहीं मुस्कराती हुई हेमंत को देखती है फिर लैपटॉप पर नजर डाल देती है।

हेमंत बाबू वाइन की घूँट लेते हुए कहानी पढ़ने में डूबने लगते हैं और बीच बीच में कहानी का कोई कोई वाक्य पढ़कर सुधा को सुनाते हैं।

कहानी पढ़ते हुए हेमंत बाबू के चेहरे पर हैरानी और खुशी की मिश्रित रेखाएँ तैरने लगती है। वे सुधा से कहते है - "अब याद आ गया। यह कहानी मैंने अनन्या से ब्रेकप के ठीक बाद लिखी था और इसे भेजने की कोशिश भी की थी। एक मजेदार वाकया बताऊँ? अनन्या ने जिस बात पर मुझसे ब्रेकप लिया था उसे पचा पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। मैंने अनन्या को खूब लंबा चौड़ा प्रेम और उलाहना से भरा एक पत्र लिखा। उसी समय मैंने यह कहानी पूरी की थी। तब कमलेश्वर शायद सारिका या कथायात्रा का संपादन कर रहे थे। और गलती से मैंने पत्र कमलेश्वर को भेज दिया और कहानी अनन्या को। तुम समझ सकती हो तब मैं कितना उलझन में रहा होऊँगा। अनन्या का कोई जवाब नहीं आना था नहीं आया लेकिन कमलेश्वर ने चुटकी लेते हुए मुझे एक पत्र लिखा था। वो पत्र होगा मेरे पास। उस समय का सारा कुछ मैंने यहीं छोड़ रखा था।"

हेमंत बाबू अलमिरा में प्रेम पत्र खोजने लगते हैं। पत्र मिलने के साथ वो पढ़ना शुरू करते है - "कहानियों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है कि वो भटकने के लिए अभिशप्त होती हैं और यही दिक्कत प्रेम के साथ भी होती है। लेकिन आपकी दिक्कत क्या है पार्टनर? आपकी जो भी, जैसी भी दिक्कत है उसके साथ मेरी पूरी सहानुभूति है। लेकिन प्रेम पत्रों को प्रकाशित करने की मेरी कोई योजना नहीं है। भविष्य में मैं ऐसी किसी योजना में शामिल होऊँगा तो मैं आपको जरूर इत्तला करूँगा। मेरी शुभकामना है कि तब तक आप अपनी इस जरूरी दिक्कत से भी निकल गए होंगे।"

हेमंत बाबू पत्र पढ़ के चहक से जाते हैं - "तब मैं कितनी ग्लानि अफसोस या न जाने क्या क्या से गुजरा होऊँगा! अभी यह वाकया मजेदार लग रहा है। वक्त कैसे हमारे देखने को बदल देता हैं।" सुधा उन्हें प्यार से देखती हैं और कहती है - "फिर भी वाकया वैसा ही रहता है... उतना ही ठोस, उतना ही आर्द्र। बस उस वाकया से वक्त का कोई सिरा जुड़ जाता है। और हम उस सिरे के संग हो लेते हैं।" हेमंत बाबू सुधा से कहते हैं - "जैसे तुम जुड़ गई हो मुझसे... अरे अड़तीस सालों से कह रहा हूँ। आज तो पी लो। आज मैं बहुत खुश हूँ।" सुधा अपना ध्यान फिर लैपटॉप पर लगा देती है।

हेमंत बाबू फिर से कहानी में डूबने लगते हैं और इस बार का डूबना जैसे उनके अंदर एक भय सृजित करने लगता है। सुधा गर्मी बढ़ाने के लिए एक और लाइट जला देती है। लेकिन कहानी का अँधेरा उन्हें कहीं और खींच लेना चाह रहा है। वे और रोशनी की ताक में खिड़की के पास आ जाते है कि बाहर खड़े लैंप पोस्ट की रोशनी भी वो पा सकें। उनके अंदर घबराहट की एक भँवर उठती है। वे सुधा से कुछ कहना चाह रहे हैं। लेकिन कह नहीं पाते। वे सुधा को देखते है। वह अभी भी लैपटॉप को देख रही है। तब सुधा कहती है - "कहीं ऐसा तो नहीं कि कहानी में उस नायक के साथ उसकी पत्नी भी साथ जाती है?"

हेमंत बाबू के चेहरे पर तनाव की छाया मंडराने लगी है। वे सुधा को हैरानी से देखते हुए पूछते हैं - "इस बात पर तुम्हें हैरान होना चाहिए और तुम हँस रही हो।" सुधा कुछ कहती नहीं। अपने गाल पर हाथ रख कर लैपटॉप पर कुछ देख रही है और मुस्करा रही है। हेमंत बाबू को सुधा एक रहस्यमय स्त्री की तरह दिखती है। उनके अंदर से एक उबाल आता है कि वे पूछें कि सुधा तुम कौन हो लेकिन उन्हें लगा कि यह सवाल ऐसा है जिसे निकल जाने के बाद वे खुद अपने ही बाण से बिंध जाएँगे। वे कहानी का क्लाइमेक्स जानने के लिए जल्दी से पेज पलटते हैं लेकिन रुक जाते है। शायद उन्हें क्लाइमेक्स याद आ गया है और वो कहानी के नायक की तरह मृत्यु के आसन्न जा रहे हैं।

हेमंत बाबू जैसे जैसे क्लाइमेक्स की तरफ बढ़ते हैं उनका मृत्य भय बढ़ने लगता है। वे बाहर देखते हैं तो उनकी हैरानी डर में बदलकर दावानल का रूप ले लेती है और उनकी तरफ लपकती है। ठीक वैसी ही रात होती जा रही है जैसे उनकी एक कहानी का नायक अपने इक्सठवें साल के बर्थ डे पर मरता है जिसके अगले दिन उसकी पूर्व प्रेमिका उससे मिलने आने वाली होती है। वैसी ही रात। बाहर बर्फ गिर रही है और नायक अपने घर की खिड़की के पास हाथ में पैग लिए अपनी प्रेमिका का इंतजार कर रहा है और उसकी पत्नी उस बेड पर बैठी अपना पैग पी रही है जिस बेड पर वे अपनी प्रेमिका से पहली बार हमसाया हुए थे।

हेमंत बाबू इस बात से रिलैक्स महसूस करते हैं कि उनकी पत्नी सुधा तो पैग नहीं पी रही हैं। और यह अंतर कहानी के एलिमेंट और उनकी आज की तारीख के एलिमेंट में ऐसे भेद कर रहा है जिससे उनकी मृत्यु की संभावना खारिज होती है। इस बात से उनके अंदर मृत्यु के भय से मुक्ति का अहसास जागता है। वे एक लंबी साँस लेकर कहानी में लिखी गई बातों को एक मुस्कराहट के साथ झटकते हैं कि अब तक वह किस फालतू के संयोग और दुर्योग में फँसे हुए थे। वे अपना पैग बनाने के लिए जैसे ही पलटते है तो देखते है कि सुधा हाथ में पैग लिए उन्हें चियर्स करती हुई कहती है - "चियर्स फॉर योर लविंग रिक्वेस्ट टू टेकिंग पैग एंड ऑवर एट्टीन इयर्स लव।" हेमंत बाबू चीखते है - तुम्हें पता है यह लाइन इस स्टोरी के कैरेक्टर का है। सुधा अपनी मुस्कराहट से खेलते हुए आँखी चौड़ी कर के ऐसे देखती है मानो पूछ रही हो कि अच्छा तो ये बात है?"

सुधा के चेहरे पर एक निश्छल मुस्कान है। वह जैसे ही पैग अंदर गटकती है हेमंत बाबू को लगता है कि उनकी साँसें बाहर आ जाएँगीं। वे सुधा की तरफ ऐसा न करने के लिए भागने को होते हैं तो उन्हें लगता है कि बाहर की बर्फबारी उनकी शिराओं और धमनियों में गिर रही हैं और उन्हें जमा रही है। सुधा दूसरा पैग लेती है और पूरा पैग एक साथ में गटकना चाह रही है। हेमंत बाबू जैसे ही उसके पैग को उससे दूर फेंकने के लिए हाथ बढ़ाते है। उनका हाथ रुक जाता है।

हेमंत बाबू अपनी घबराहट की हद को पार कर चुके हैं। वे जिंदगी की भीख माँगते हुए एक याचक की तरह कहते है - "तुमने क्यों पी लिया आज? तुम तो मेरी सोच को पढ़ सकती हो सुधा। आज मेरे भय को क्यों नहीं देख पा रही हो? तुम समझने की कोशिश करो। ठीक वैसा ही इस कहानी में हुआ है जैसा आज मेरे साथ हो रहा है। इस कहानी के नायक की तरह अब मैं मर जाऊँगा। प्लीज... पढ़ो तुम इस कहानी को।" हेमंत बाबू सुधा की तरफ कहानी फेंक देते हैं।

सुधा पहली बार शराब पीने के झटके में आ चुकी है। उसे ये सब कुछ एक रोचक विवरण जैसा लग रहा है। उसके चेहरे पर नशे की हल्की चिकनी उत्तेजना शरमाया हो रही है। वो मुस्कराती हुई पूछती है - "अपने प्रेमिका से मिलने के पहले ऐसी घबराहट ऐसा उन्माद ठीक नहीं है माइ लव।" हेमंत बाबू घबराते हुए कहते हैं कि - "जानती हो मैंने तुम्हारे हाथ से ये पैग क्यों नहीं छीना क्योंकि इस कहानी का नायक ऐसा नहीं करता है। वो अपनी पत्नी के पैग को हाथ से झटक देता है जैसे किसी के शर्ट पर कोई कीड़ा या कुछ गिरता है तो उसे झटक देता है। उसका पैग गिर जाता है और ग्लास टूट जाता है।"

हेमंत बाबू अपनी बेचैनी को थामते हुए कहते हैं - "सुधा तुम समझने की कोशिश करो... कहानी ही सच होती है। इसलिए मैं इस कहानी में घट चुकी घटनाओं को बदल देना चाहता हूँ। नहीं तो मैं मर जाऊँगा। तुम समझने की कोशिश करो सुधा। तुम बचा सकती हो मुझे। जैसे आज तक तुमने मुझे बचाया है... प्लीज... तुम इस कहानी को पढ़ो और ठीक उस नायक की पत्नी से उलट व्यवहार करो। बदलो इस कहानी के कंटेंट को और मुझे बचा लो।"

सुधा पैग को मुँह में लिए हेमंत को ऐसे देखती है और कहती है - 'तुम्हारी दिक्कत क्या है पार्टनर?' हेमंत सुधा की इस बात पर काँप जाते हैं। सुधा कहती है - "अब ये मत कहना कि यह लाइन भी तुम्हारी कहानी में है। क्योंकि यह लाइन कहानी की नहीं कमलेश्वर के पत्र की है। आइ एम राइट माई गोल्ड लव?" इतना कह के सुधा अपने वाइन ग्लास को पलटकर झुलाने लगती है और आँख दबाकर कहती है - "प्लीज एक और बना दो।"

हेमंत बाबू को लगता है कि वो दम तोड़ने और दम बचाने की पाटों के बीच पिस रहे हैं। उनको खुद पर कई बातों को लेकर गुस्सा आ रहा था। वे बड़बड़ाते है क्या जरूरत थी रूम की सफाई करने की? क्या जरूरत थी अपने किरदार को इक्सठ साल की उम्र में मारने की? पल भर में उन्हें लगा कि उनकी धड़कनें उनके सीने को फाड़ते हुए बाहर आ जाएँगी।

हेमंत बाबू उफान मारती धड़कनों को शांत करना चाह रहे हैं और उधर सुधा नशे की लहरों पर उछलने लगी है। हेमंत बाबू को लगता है कि कोई आखिरी साँस है जिसे वो अपनी पूरी ताकत के साथ बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में वो डर जाते है कि साँस बचाने के क्रम में साँस दम न तोड़ दे। इस आशंका में वे अपनी बचाई हुई आखिरी साँस में से एक छोटा टुकड़ा छोड़ते हैं। टुकड़ा छोड़ते हुए उम्मीद में रहते हैं कि एक साँस उधर से और आएगी। लेकिन टुकड़ा छोड़ने के बाद वे इस बात से इतना घबरा जाते हैं कि कहीं उधर से एक साँस नहीं आई तो? इस घबराहट में वो अपने छोड़े हुए टुकड़े को फिर पकड़ लेते हैं और उसे दबाकर तब तक रखते हैं जब तक उन्हें लग नहीं जाता कि साँस बचाने के क्रम में वे कामयाब हो गए है।

अचानक हेमंत बाबू चीखते है कि - "मैं कहानी का लेखक हूँ। मैं इसकी तारीख बदल सकता हूँ। उसके किरदार की उम्र को बदल सकता हूँ। इस लिहाज से इक्सठ की उम्र बढ़कर और आगे खिसक सकती है। और मैं मरने से बच सकता हूँ।" वे सुधा के पास जाते हैं और उसे समझाते हुए कहते है - "कहानी में नायक रात के एक बजे मरता है और अभी बारह बजने में चार घंटे बाकी हैं। मैं तीन घंटे में पूरी कहानी बदल दूँगा।" सुधा अपना अँगूठा दिखा कर ऑल द बेस्ट कहती है।

हेमंत बाबू पेज लेकर कहानी को लिखने लगते है। उन्हें लगता है कि बर्फ और ज्यादा गिर रही है। सुधा उनके पास आकर कहती है कि क्या क्या बदला तुमने कहानी में? हेमंत बाबू एक उत्साह के साथ कहते है कि अगर मैं कहानी में एक साल के अंदर चौबीस महीने कर दूँ तो? सुधा कुछ कहे इससे पहले कहते है कि ऐसा ही करना होगा।

हेमंत बाबू खुश हैं कि वे तारीख बदल रहे है। इस बार वे पानी पीते है। उन्हें लगता है कि साल को चौबीस करना ज्यादा हो रहा है। वे बीस करते हैं। बीस करने के बाद जब सब चेंज करते है तो उन्हें लगता है कि ज्यादा हो रहा है। वे पंद्रह करते है। वे सुधा से पूछते है बर्फबारी कुछ कम हुई है? सुधा मुँह बना देती है।

हेमंत बाबू घड़ी को देखते है और कहते है अभी एक घंटा ही बीता है। और मैं अच्छा फील कर रहा हूँ। मैं अभी जिन साँसों के टुकड़े को छोड़ पकड़ रहा था इस एक घंटो में कुछ कम हुआ है। और मैं एक बार फिर कह सकता हूँ। चीख चीख के कह सकता हूँ कि रचना ही बचना है। इन्फैक्ट अब मुझे इतना अच्छा लग रहा है कि जी कर रहा है कि सिर्फ एक फरवरी के अट्ठाईस को उन्तीस कर देता हूँ। अगर एक दिन बच गया और उससे मिल लिया तो मैं हमेशा के लिए बच जाऊँगा। ये मैं जानता हूँ।" सुधा फिर अँगूठा दिखा कर ऑल द बेस्ट कहती है।

हेमंत बाबू लगातार लिखते जा रहे हैं। सुधा कहती है कुछ खा लेते है। तभी घड़ी का घंटा बजता है। अब रात के ग्यारह बज गए हैं। हेमंत व्यास का गला सूख जाता है और लगता है कि बचाई हुई साँसें निकल रही है। वे हाँफते हुए कहानी को देखते हैं। कहानी पर देखने से उसके प्रकाश से उनकी आँखें चौंधियाती है और अचानक उनके अंदर कुछ टूटता है। वे सुधा से कहते हैं - "कि जिन तारीखों में उनका किरदार मरा था और अगले दिन उसकी प्रेमिका उसके पास फू्लों का गुच्छा लेकर आती है। अगर तारीख को बदल दिया तो क्या वह अगले दिन मिलने आएगी? एक तारीख बदलती है तो तारीख की अनगिनत शाखें एक साथ बदल सकती हैं। क्या वह बदलती तारीख के साथ आएगी?" सुधा हँसकर कहती है - "आएगी जरूर आएगी। तुम्हारे अड़तीस साल का इंतजार जाया नहीं होगा। माई गोल्ड लव।"

हेमंत बाबू पेज पर कलम को छोड़ देते है। मानो उन्होंने अपनी जिंदगी को छोड़ दिया हैं। वे सुधा को एक गहरे भाव से देखते हैं जैसे सुधा ही उनका हासिल है। लेकिन वे जानते है अनन्या के सच को। अपनी जिंदगी में उसकी उपस्थिति को। इसलिए सुधा से अपना संशय जाहिर करते है - "अगर तारीख बदल दिया तो हो सकता है कि मेरे मरने के बाद भी वह मुझसे मिलने नहीं आए। जैसे कहानी में उसकी प्रेमिका अगले दिन बुके लेकर मिलने आती है।" सुधा कहती है - "फिर भी मैं तुम्हारे पास रहूँगी।"

सुधा के चेहरे पर अभी भी एक निश्चल मुस्कान है और वाइन का नशा उसकी मुस्कान में एक चमक भर रहा है। लेकिन हेमंत बाबू को सुधा किसी काली छाया में बदलती हुई दिखने लगती है। वे गुस्से में सुधा के पैग को अपने हाथ से मार देते हैं। पैग सुधा के हाथ छूट कर गिरता है और टूट जाता है। अपनी इस हरकत से वे और डर जाते है। डर के मारे सुधा के पास से अपना कदम पीछे खींचने लगते हैं। और जाकर दीवार के सहारे अपने को टिका लेते हैं।

सुधा यह देख कर घबरा जाती है - "क्या हुआ? हेमंत बाबू कुछ नहीं बोलते। उन्हें लगता है कि उनके शरीर का सारा खून पानी बन गया है। वे खुद को खड़ा नहीं कर पा रहे थे। वे पास में पड़ी कुर्सी पर जा कर धम्म से बैठ जाते हैं। सुधा ये देखकर उठती है लेकिन लड़खड़ा कर गिरने गिरने को होती है। खुद को सँभालती हुई हेमंत के पास आती है और पूछती है - "क्या हुआ...? अनकंफर्टेबल फील कर रहे हो... हॉस्पिटल ले चलूँ?" हेमंत उसे देखते हैं और कहते हैं - "ये तुम नहीं, कहानी के नायक की पत्नी पूछ रही है।"

अब सुधा को भी डर लगने लगता है लेकिन उसके लिए यह यकीन करना कठिन है कि ये सारा कुछ कहानी में घटी हुई घटनाएँ हैं। वो हेमंत से फिर हॉस्पिटल चलने की बात करती है तो हेमंत कहते है कि - "तुम फिर कहानी की बात कर रही हो।" सुधा अब एकदम डर जाती है और हेमंत से नजर हटाकर पड़ी हुई कहानी को देखती है। कहानी के पन्ने हल्के हल्के हिल रहे है।

सुधा धीरे धीरे कहानी की तरफ बढ़ती है और कहानी पढ़ने लगती है। कहानी पढ़कर खत्म करने के बाद कहती है कि - "तुम बिना मतलब डर रहे हो। यह महज एक संयोग है कि एक आदमी रिटायरमेंट के बाद अपनी पत्नी के साथ अपनी पूर्व प्रेमिका से मिलने जाता है और मिलने के एक दिन पहले उसकी प्रेमिका का तार आता है कि वो जरूरी काम से दिल्ली जा रही है और वो इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाता और मर जाता है। अरे इस जमाने में तार कहाँ से आएगा। आपकी अनन्या अभी भी तार भेजती है?

सुधा की बातें सुन के हेमंत बाबू थोड़े रिलैक्स होते है लेकिन उनके मन में अभी भी डर बचा हुआ है। वे उस डर को निकालने के लिए कहानी की और साम्यताओं को भी खारिज करने की लालसा से कहते है - "लेकिन कहानी में अड़तीस सालों का जो कोइंसिडेंस है। उसका क्या? तुम तो जानती हो उन्नीस सौ अठहत्तर मेरा मेरा ब्रेकप हुआ था। उस लिहाज से अड़तीस साल का मेरा भी इंतजार है। सुधा हँसती हुई कहती है - "तुम तो सन अठहत्तर से ऐसे डर रहे हो जैसे कि सन पचहत्तर हो... और तुम फिक्शन लेखक हो। और वो एक नृतत्व शास्त्री था... वो मिट चुकी सभ्यताओं और आदिवासियों पर लिखता था। वो प्रोफेसर था तुम पत्रकार। सुधा हेमंत को और रिलैक्स करते हुए कहती है - "पहली बार पीने की खुमारी को तुमने क्या मजा चखाया मुझे। मैं एकदम से डर गई थी।"

सुधा अपने और हेमंत के लिए पैग बनाती है। दोनो चियर्स कर के फिर पीते हैं। तभी दूर से सायरन की आवज सुनाई पड़ती है। सुधा ध्यान नहीं देती लेकिन सायरन की आवाज पर हेमंत बाबू अपना कान टिका देते हैं। उनका डर फिर से बढ़ जाता है। वे घबराते हुए कहते हैं - "सुन रही हो ये आवाज? कहानी का नायक अपनी पत्नी से पूछता है कि ये पुलिस के सायरन की आवाज है या एंबुलेंस की? और मैं भी तुमसे यही पूछ रहा हूँ?"

सायरन की आवाज सुन के सुधा डर जाती है। उसे समझ में नहीं आता कि वह क्या कहे। दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है। बाहर बर्फ का गिरना और तेज हो जाता है। कमरे के अंदर एक बर्फीली हवा का झोंका आता हैं और दोनों को एक झटका देते हुए कँपा जाता है। हेमंत बाबू खिड़की बंद करते हैं और सुधा को चादर देते हैं। फिर पूरे पैग को एक घूँट में उड़ेल देते है। बर्फ सीसे की खिड़की पर जमने लगती है।

अब सुधा का डर बढ़ता जाता है। वह एक झटके में उठती है और कहती है कि चलो यहाँ से चलते हैं। मैं सामान पैक करती हूँ। किसी होटल में ठहर जाएँगे। वो जल्दी जल्दी में सामान पैक करने लगती है। तुम केयर टेकर को फोन करो। वो जैसे ही फोन हेमंत को देने के लिए उठाती है तो फोन बज उठता है। फोन की स्क्रीन पर अनन्या का नाम ब्लिन्क करने लगता है। हेमंत पूछते हैं किसका फोन है? सुधा कुछ कहती नहीं हेमंत को एक भय से देखती है। हेमंत समझ जाते है। उनके चेहरे पर कहानी के सच को स्वीकार करने का भाव आता है।

हेमंत बाबू आराम से कुर्सी पर बैठ जाते है और सिगरेट जलाते है। सुधा कहती है - "अब यहाँ रुकना ठीक नहीं है। कहानी में नायक अपने पैतृक घर में अपनी प्रेमिका का इंतजार करता है और मरता है। हम इस घर को छोड़ देंगे।" हेमंत अपनी लाचार हँसी को खोलते हुए कहते हैं - लेकिन कहानी में नायक की पत्नी घर छोड़ने की बात करती है।"

सुधा और डर जाती है। हेमंत उसे रिलैक्स करने की कोशिश करते हैं - "काल से कहाँ तक भागा जा सकता है माई गोल्ड लव?" वो सिगरेट पीते हुए बाहर की तरफ देखते हैं। बाहर बिल्कुल शांति है। बर्फ के बीच लैंप पोस्ट अपनी आँच लिए जूझता हुआ मालूम पड़ता है। तभी सड़क पर चलते हुए कुछ घोड़े की टाप सुनाई देती है। सुधा हैरान होकर कहती है - ''आप सुन रहे हैं घोड़े की टापों की आवाज को।'' हेमंत मुस्कराते हुए कहते है - "कहानी में यह सवाल नायक की पत्नी पूछती है। आई एम राइट माई गोल्ड लव?"

सुधा हेमंत के पास आती है और कहती है प्लीज चलो यहाँ से। हेमंत पैग बनाते हैं और कहते है कि तुम क्यों डर रही हो? मरना तो मुझे है? सुधा की आँखें भर आती हैं लेकिन उसके अंदर गुस्से की लहर उठती है - "मैं सच कह रही हूँ। अगर ऐसा कुछ हुआ तो सिर्फ तुम नहीं मरोगे। मैं भी मार लूँगी खुद को। मैं किसी भी हाल में इस कहानी को सच नहीं होने दूँगी। तुम चलो यहाँ से। प्लीज"।

हेमंत सुधा के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए कहते हैं - "यही तो मैं कहना चाह रहा हूँ...।" हेमंत अभी इतना कहते हैं कि तभी फोन पर एक मैसेज आता है। हेमंत मानो अपनी मृत्यु को स्वीकार कर चुके हैं। वे कहते है - "शायद ये उसका तार है।" वे मैसेज पढ़ने के लिए फोन उठाते है तो सुधा उनका हाथ पकड़ लेती है।

हेमंत बाबू सुधा को प्यार से देखते है और उसके हाथ को पकड़ कर बेड पर बैठाते है। फिर सुधा के लिए भी पैग बनाते हुए कहते हैं - "जब पल पल मौत करीब आती हुई दिखाई दे तो पल पल जिंदगी की बात करनी चाहिए। तुम जानती हो मैंने इस कहानी का क्लाइमेक्स क्या रखा था। पहले क्लाइमेक्स में जब नायक उसका पैग फेंकता है तो दोनों के बीच झगड़ा शुरू होता है और आखिर में उसकी पत्नी उसे मार देती है।" सुधा हेमंत को और कस के पकड़ लेती है। हेमंत सुधा के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहते हैं - " लेकिन तुम मेरे साथ हो और इससे खूबसूरत कुछ नहीं हो सकता।"

हेमंत बाबू सुधा के हाथों में अपना हाथ लेते है और डांस करते है। डांस करते हुए अपनी टोपी उठा कर सर पे लगा लेते है। दोनों खुश हो जाते हैं। और नाचते नाचते थक जाते हैं लेकिन अपना नाचना नहीं रोकते। सुधा घड़ी की तरफ देखती है तो हेमंत उसका चेहरा घुमा कर अपनी तरफ कर लेते हैं।

हेमंत बाबू अपना बर्थ डे केक काटते हैं और सुधा को खिलाते हैं। फिर दोनों नाचने लगते हैं। घड़ी में कभी भी एक बजे का घंटा बज सकता है। दोनों एक दूसरे को आखिरी बार देखने के भाव से देखते हैं। घड़ी की सुई एक बजाने को होती है। जैसे ही घड़ी का घंटा बजता है दूसरी तरफ दरवाजे पर दस्तक होती है। दोनों एक दूसरे को देखते हैं कि कौन आ गया।

हेमंत बाबू दरवाजा खोलते हैं तो सामने अनन्या खड़ी है। पल भर के लिए दोनों एक दूसरे को देखकर खो से जाते हैं। उसके हाथ में बुके है। तभी बाहर खड़ा अनन्या का ड्राइवर पूछता है गाड़ी कहाँ पार्क करूँ? अनन्या ड्राइवर की बातों का जवाब दिए बिना अंदर दाखिल होते हुए कहती है - "मैंने डिस्टर्ब तो नहीं किया? एक्चुअली मेरे भाई की तबीयत खराब है और मुझे दिल्ली जाना था। एयरपोर्ट पर अपना सामान चेक करा रही थी कि सोचा कि तुझे एक मैसेज कर दूँ। तभी तुम्हारी एक कहानी ने मुझे डरा दिया था। तब से कुल्लू से भागी आ रही हूँ। याद है तुम्हें वो कहानी जो तुमने सत्रह मार्च की तारीख में मुझे भेजा था?"

अनन्या एक लंबी साँस लेती है - "तुम मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहे थे। मैसेज का भी कोई रिप्लाई नहीं। मुझे लगा कि मैं तुमसे कभी नहीं मिल पाऊँगी। तुमने उस कहानी को अपने किसी संग्रह में क्यों नहीं डाला?" वो बुके को देखती है और उसे फेंक देती है और जाकर हेमंत से गले लग जाती हैं। हेमंत बाबू का हाथ धीरे धीरे उठता है और वो अनन्या को अपनी बाँहों में ले लेता है। लेकिन हेमंत बाबू हैरानी से सुधा को देखते हैं। सुधा भी उन्हें उतनी ही हैरानी से देखती है।


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हिंदी समय में शेषनाथ पांडेय की रचनाएँ