वह छठी कक्षा से मेरे साथ पढ़ता था। हमेशा प्रथम आता था। फिर भी सारा कॉलेज उसे
सनकी मानता था। एक प्रोफेसर ने एक बार उसे रजिस्टर्ड पागल भी कहा था। कभी बिना
मूँछों की दाढ़ी रख लेता था तो कभी मक्खी छाप मूँछें। तरह-तरह के टोप-टोपी
पहनना भी उसके शौक में शुमार था।
बहुत पुराना परिचय होते हुए भी मुझे उससे कोई खास लगाव नहीं था। सच तो यह है
कि उसके प्रति अपनी नापसंदगी मैं कठिनाई से ही छिपा पाता था। पिछले कुछ दिनों
से वह किस्म-किस्म की पगड़ियाँ पहने दिख रहा था। लेकिन तब तो हद ही हो गई जब
कक्षा में वह अपना सिर घुटाए हुए दिखा।
प्रशांत ने चिढ़कर कहा, "सर तो आदमी तभी घुटाता है जब जूँ पड़ जाएँ या तब जब
बाप मर जाए। वह उठकर कक्षा से बाहर आ गया। जीवन में पहली बार वह मुझे उदास
दिखा। प्रशांत की बात मुझे भी बुरी लगी थी सो उसे झिड़ककर मैं भी बाहर आया।
उसकी आँख में आँसू था। उसकी पीड़ा कम करने के उद्देश्य से मैंने कहा, "कुछ
लोगों को बात करने का सलीका ही नहीं होता है। उनकी बात पर ध्यान मत दो।
उसने आँसू पोंछा तो मैंने मजाक करते हुए कहा, वैसे बुरा मत मानना बाल बढ़ा लो,
सिर घुटाकर पूरे कैंसर के मरीज लग रहे हो।
मेरी बात सुनकर वह मुस्कराया। हम दोनों ठठाकर हँस पड़े। आज उसका सैंतालीसवाँ
जन्म दिन है। सर घुटाने के बाद भी कुछ महीने तक मुस्कुराकर कैंसर से लड़ा था
वह।