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कविता

इजहार

हरीश पाराशर ऋषु


रंगों को बौछार है,
बगिया भी गुलजार है
सुनो चमन के रखवालो,
अपना ये इजहार है।

धरा एक है, गगन एक है,
सबको छुए पवन एक है,
हरी-हरी है वसुंधरा,
नीला-नीला अंबर है,

फिर क्‍यूँ पग-पग धल में दिखते,
सबके रंग अनेक हैं।

भर पिचकारी प्‍यार रंग से,
तन-मन पे पुरधार है,
जग-आँगन में सात रंगों से,
सत्‍ जीवन का घोल के,

ईमान रंग के संग हो मनवा,
सच का आनंद खोल के।


हर पल दिल से यही पुकारें,
छल-बल-खल इनकार है,
मुस्‍कानों का तिलक लगाएँ,
चेहरा हर दरकार है,

इंद्रधनुष की आभा में,
हर जीवन उजयार हैं।
 


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