भूखे आदमी की थाली की
एक जायकेदार चीज में तब्दील होने से पहले
उसे जीवन से लेकर मृत्यु तक की यात्रा
पूरी करनी पड़ती है असह्य यातना सह कर
कभी सिर में चाकू घुसेड़ कर उसे काटा जाता है
कभी उलट कर
सीधी रेखा में पेट काट कर खोला जाता है
उस वक्त भी धड़कता रहता है उसका दिल
कभी-कभी बिना चाकू छुआए ही
जीते जी उसे धीमी आँच पर या माइक्रोवेव में
भूना जाता है
समुद्र की प्रशांत नीली दुनिया से निकाले जाने के बाद से
सिझाए जाने के क्षण तक उसे जिंदा रखा जाता है
क्योंकि उसके मर जाने पर उस का मांस अकड़ने लगता है
सिझाए जाने से पहले उसे
ठंडे पानी के बर्तन में रखा जाता है
उपर से ढक्कन मूँद दिया जाता है
ताकि वह फड़फड़ा कर बाहर कूद न पड़े
फिर वह बर्तन तपने के लिए रखकर उसे खौलने दिया जाता है
पानी के खौलते जाने के साथ-साथ उसका जीवन भी
भाप बन कर उड़ जाता है
या फिर उसे चिमटे से पकड़ कर
उस पर तब तक गर्म पानी मारा जाता है
जब तक वह लाल भभूका न हो जाए
और चटकों से दम न तोड़ दे
कभी-कभी उसे डीप फ्रीजर में रखा जाता है
जब वह सुन्न पड़ जाता है
उसे सीधे खौलते पानी में डाल दिया जाता है
एकबारगी सचेत होकर वह तड़पने लगता है
उसकी चीखें होती हैं मानव-कानों की श्रव्य सीमा से परे
मनुष्य की आँखें उसके जान निकलने को शांति से निहारती रहती है
सच तो यह है कि वह अत्यंत संवेदनशील प्राणी है
चूँकि उसकी मज्जा-संस्था पूर्ण विकसित होती है
काटे जाने या उबाले जाने का दर्द
उसे इनसानों जितनी ही प्रखरता से महसूस होता है
उसके शरीर में इंद्रियों की एक संपूर्ण व्यवस्था होती है
नौ माह गर्भवती रही उसकी प्रसूता मादा
इनसान जितना ही छिड़कती है अपने शिशुओं पर अपनी जान
घायलों के साथ सहानुभूति का व्यवहार
उनमें भी होता है
इस कदर इनसानों के साथ
झींगों की विलक्षण समानता है
उनसे रिश्ता सिर्फ यह है कि एक खानेवाला है
दूसरा खाया जाने वाला
पानी से हवा से जंगल से चट्टानों से
खेतों से मिट्टी से बालू से कीचड़ से
कोई भी जीव खुद होकर
आदमी की दुनिया में नहीं घुसता
हर कोई अपनी-अपनी दुनिया की मर्यादा में
पृथ्वी का संतुलन बनाए रखकर जीता है
भूखा आदमी हर एक के स्वयंभू जगत में
उद्दंडता से घुसता और तहस-नहस करता है
भक्ष्य और भक्षक का द्वंद्व आदिम है
इस उक्ति के पीछे दुबकने का
इनसान का कोई हक नहीं बनता
पृथ्वी तल पर इनसानों की आधी आबादी आधे पेट सोती है
यह जानने के बावजूद वह जबान की तलब पूरी करने के लिए
हर शै को व्यंजन में बदलने का
अट्टहास करता है
दुनिया का सबसे जायकेदार सबसे महँगा
सबसे विलासितापूर्ण व्यंजन बनाने के लिए
इतनी क्रूरता जरूरी भी तो है।
(मराठी से हिंदी अनुवाद स्वयं कवि के द्वारा)