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कविता

रोटी

मनीषा जैन


बसी रहती है
मेरी साँसों में
रोटी की ताजा महक
कोई मुझसे मेरी
रोटी छीन न ले
इसलिए आँचल में
छिपाकर रखती हूँ
और रात को
सिरहाने लगा लेती हूँ।
 


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हिंदी समय में मनीषा जैन की रचनाएँ