बसी रहती है मेरी साँसों में रोटी की ताजा महक कोई मुझसे मेरी रोटी छीन न ले इसलिए आँचल में छिपाकर रखती हूँ और रात को सिरहाने लगा लेती हूँ।
हिंदी समय में मनीषा जैन की रचनाएँ