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कविता

पहाड़ पर चिड़िया

मनीषा जैन


पहाड़ पर बैठ गई है वह
शहर छोड़कर चली गई है वह
पेड़ों का भी
छोड़ रही है दोस्ताना
सुनती है नदी को
बहती है बस नदी के संग-संग
करती है बस जंगल से बातें

नहीं बैठती अब दरवाजों पर
नहीं चहकती अब
घर की मुँडेरों पर
चली गई है शहर से बाहर

कब आएगी वह
नींद सी वापस
बुलाओ उसे
बच्चों के वास्ते
दाना-पानी दो उसे
कैसे रहेगी?
पहाड़ पर चिड़िया।
 


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