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कविता

पहाड़ों में फूल

मनीषा जैन


मेरे बच्चे !
मैं अपने चेहरे को
दोनों हाथों से थामे
तुम्हारे आने की कल्पना से
सिहर उठती हूँ

तुम्हें भी मेरी तरह
अपनी आशाओं को
ढहते हुए देखना होगा

लेकिन फिर भी
मैं कर रही हूँ
तुम्हारा इंतजार
एक बच्चे की तरह
एक नई दुनिया
बसाने के लिए

शायद तुम 
पहाड़ों में 
फूल खिला सको
समय की धारा को
बदल सको।
 


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