बर्तन साफ करने के विकट काम को खत्म कर लौटी है घर अपने दरवाजे पर करती है थप-थप-थप खाना तैयार करके प्रतीक्षा में बैठा है उसका पति हाथ में दो लाल फूल लिए खोलता है दरवाजा उसकी सारी थकान छूमंतर हो जाती है कितना धनी महसूस करती है वह स्वयं को।
हिंदी समय में मनीषा जैन की रचनाएँ