hindisamay head


अ+ अ-

कविता

रामदीन

प्रदीप शुक्ल


रामदीन
सपनों की दुनिया में सैर करें

भूल गए लाना था
मिट्टी का तेल
खेल रहे परियों संग
छुपा छुपी खेल
रामदीन
हौले से बादल पर पैर धरें

हाड़ तोड़ मेहनत से
मिली जो कमाई
रस्ते में महुए की
बोतल मुस्काई
रामदीन
रोज शाम बस बोतल में उतरें

महुए की मालिक है
अपनी सरकार
दौड़ रही मालिक की
बुलेट प्रूफ कार
कई रामदीन
यहाँ रोज कुचल कुचल मरें।
 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रदीप शुक्ल की रचनाएँ