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कविता

तुम्हारा होना

प्रतिभा कटियार


तुम्हारा होना
जैसे चाय पीने की शदीद इच्छा होना
और घर में चायपत्ती का न होना
जैसे रास्तों पर दौड़ते जाने के इरादे से निकलना
और रास्तों के सीने पर टँगा होना बोर्ड
डेड इंड
जैसे बारिश में बेहिसाब भीगने की इच्छा
पर घोषित होना सूखा
जैसे एकांत की तलाश का जा मिलना
एक अनवरत कोलाहल से
जैसे मृत्यु की कामना के बीच
बार-बार उगना जीवन की मजबूरियों का
तुम्हारा होना अक्सर 'हो' के बिना ही आता है
सिर्फ 'ना' बनकर रह जाता है...


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