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कविता

प्यार

प्रतिभा कटियार


मैं उसे प्यार करता था
इतना कि
दूर चला गया उससे
ताकि महसूस कर सकूँ
जुंबिश उसकी चाहत की
हर पल
मैं उसे खुश देखना चाहता था
इतना कि
मैंने हटा लीं अपने नजरें
उस पर से
ताकि नजर न आ सके
एक भी आँसू
मैं पाना चाहता था सानिध्य
दूध और पानी जैसा
और मैंने
छुड़ा लिया दामन कि
ये ख्वाब,
बचा ही रहे साबुत
मैं बहुत जोर से हँसना चाहता था
इतनी तेज कि
मेरे भीतर का विषाद
घबराकर दम तोड़ दे
भीतर ही...
मैं बो देना चाहता था खुशियों के बीज
समूची धरती पर
इसलिए उठा लिए हथियार
कि इनसे लड़ने को ही
आतुर हो उठें मुस्कुराहटें
मैं तुम्हें रोकना चाहता था
इसलिए मैंने जाने दिया तुम्हें
ताकि रोकने की उस चाहत को
रोके रह सकूँ सीने में
हमेशा...
 


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