hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जैसे बरसता है सावन...

प्रतिभा कटियार


खिलना ओ जीवन!
जैसे खिलती है सरसों
जैसे खिलती हैं बसंत की शाख
जैसे भूख के पेट में खिलती है रोटी
जैसे खिलता है मातृत्व
जैसे खिलता है, महबूब का इंतजार
जैसे पहली बारिश में खिलता है रोम-रोम
महकना ओ जीवन!
जैसे महकती है कोयल की कूक
जैसे महकती हैं गेहूँ की बालियाँ
जैसे महकता है मजदूर का पसीना
जैसे महकता है इश्क का इत्र
जैसे महकती है उम्मीद की आमद
जैसे महकते हैं ख्वाब
बरसना ओ जीवन!
जैसे चूल्हे में बरसती है आग
जैसे कमसिन उम्र पर बरसती है अल्हड़ता
जैसे सदियों से सहते हुए लबों पर
बरसता है प्रतिकार का स्वर
जैसे पूर्णमासी की रात बरसती है चाँदनी
जैसे इंतजार के रेगिस्तान में
बरसता है महबूब से मिलन
जैसे बरसता है सावन...
 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रतिभा कटियार की रचनाएँ