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कविता

हरा

प्रतिभा कटियार


कुछ जो नहीं बीतता
समूचा बीतने के बाद भी
आमद की आहटें नहीं ढक पाती
इंतजार का रेगिस्तान
बाद भीषण बारिशों के भी
बाँझ ही रह जाता है
धरती का कोई कोना
बेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता है
चाय का प्याला
सचमुच, क्लोरोफिल का होना
काफी नहीं होता पत्तियों को
हरा रखने के लिए...
 


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हिंदी समय में प्रतिभा कटियार की रचनाएँ