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कविता

इनमें तो कुछ भी ठीक से दर्ज नहीं...

प्रतिभा कटियार


भूगोल के किसी भी पन्ने में नहीं दर्ज हैं
एवरेस्ट से भी ऊँचे वे पहाड़
जिन्हें पार किए बगैर
जिंदगी तक नहीं जाता कोई रास्ता
नहीं दर्ज कोई जंगल
जिनसे गुजरे बगैर
मुमकिन ही नहीं खुद की
एक साँस भी छू पाना
नहीं हैं कोई जिक्र उन नदियों का
जो आँखों से लगातार बहती हैं
और सींचती रहती हैं
पूरी दुनिया में प्रेम की फसल
ना... कहीं नहीं लिखा उन सहराओं का नाम
जिसके जर्रे-जर्रे में छुपे हैं
इश्क के नगमे
और विरह की कहानियाँ
उन दिशाओं का नाम तक नहीं
जिस ओर गया था प्रेम का पथिक
देकर उम्र भर का इंतजार
भला किस पन्ने पर लिखा है
उन लहरों का नाम
जिन पर मोहब्बत लिखा था
और वो हो गई थी दुनिया की सबसे ऊँची लहर
बार-बार घुमाती हूँ ग्लोब
पलटती हूँ दुनिया भर के मानचित्र
नहीं नजर आता उस देश का नाम
जहाँ अधूरा नहीं रहता
प्यार का पहला अक्षर
मुरझाती नहीं उम्मीदें
स्मृतियाँ शाम के उदास साए में
लिपटकर नहीं आतीं
और एक दिन मुकम्मल हो ही जाता है इंतजार
जिंदगी के इसी पार
किसने लिखी हैं ये भूगोल की किताबें
किसने बनाए हैं दुनिया के नक्शे
इनमें तो कुछ भी ठीक से दर्ज नहीं...
 


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