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कविता

प्रेम का राग

प्रतिभा कटियार


जब देखती हूँ तुम्हारी ओर
तब दरअसल
मैं देख रही होती हूँ अपने उस दुख की ओर
जो तुममें कहीं पनाह पाना चाहता है
जब बढ़ाती हूँ तुम्हारी ओर अपना हाथ
तब थाम लेना चाहती हूँ
जीवन की उस आखिरी उम्मीद को
जो तुममे से होकर आती है
जब टिकाती हूँ अपना सर
तुम्हारे कंधों पर
तब असल में पाती हूँ निजात
सदियों की थकन से
तुम्हें प्यार करना असल में
ढूँढ़ना है खुद को इस सृष्टि में..
बोना है धरती पर प्रेम के बीज
और साधना है प्रेम का राग...
 


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