पूरे शहर में तितलियाँ उड़ती फिर रही हैं। रंग बिरंगी तितलियाँ, छोटी-बड़ी तितलियाँ। खूबसूरत तितलियाँ। आज शहर को अचानक क्या हो गया है? पूरा शहर तितलियों से भरा है। हर कोई तितलियों के पीछे भाग रहा है। भागता ही जा रहा है। कोई छोटी तितली के पीछे भाग रहा है, कोई बड़ी तितली के पीछे। न कोई गाड़ी, न बस, न ऑटो। सारे ऑफिस बंद, दुकानें भी बंद। घर में कोई नहीं, बड़े-छोटे, स्त्री-पुरुष सब के सब सड़कों पर दौड़ते हुए। पता चला ये जो तितलियाँ हैं। दरअसल, ये तितलियाँ नहीं हैं, ख्वाब हैं।
नए राजा ने यह मुनादी करवाई है कि हर कोई अपने जीवन का एक ख्वाब पूरा कर सकता है। सरकार हर किसी का एक ख्वाब जरूर पूरा करेगी। अब जो यह मुनादी हुई तो सबकी ख्वाबों की पोटलियाँ निकल कर बाहर आ गईं। सदियों से पलकों के पीछे दबे पड़े ख्वाब जरा सा मौका मिलते ही भाग निकले। सारे ख्वाब तितली हो गए। अब हर कोई अपने ख्वाबों के पीछे भाग रहा है। कौन सा पकड़े, कौन सा छोड़ा जाए। वो वाला, नहीं वो वाला। नहीं, सबसे अजीज तो वो था, इसके बगैर तो काम चल सकता है। कोई किसी से बात नहीं कर रहा है। सब ख्वाबों के पीछे भाग रहे हैं और जिन्होंने पकड़ लिया है अपने ख्वाबों को, वे इस पसोपेश में हैं कि कौन सा पूरा कराया जाए। भाई, ऐसा मौका रोज तो नहीं मिलता है ना?
इसी आपाधापी में दिन बीत गया। बच्चों के हँसने की आवाजें शहर में गूँजने लगीं। पूरे दिन जब सारे बड़े अपने-अपने ख्वाबों के पीछे भाग रहे थे बच्चों ने मिलकर खूब मजे किए। न स्कूल का झंझट था, न घरवालों की रोक-टोक। जो जी चाहा वो किया, जितनी मर्जी आई उतनी देर खेलने का लुत्फ उठाया। शाम को उनके खुलकर हँसने की आवाजें शहर में गूँजने लगीं। बड़ों ने डाँटा, चुप रहो, डिस्टर्ब कर रहे हो तुम लोग?
किस बात में डिस्टर्ब कर रहे हैं हम? बच्चों ने पूछा।
आज नए राजा का फरमान है कि वो सबका एक ख्वाब पूरा करेंगे। हम लोग अपना-अपना सबसे प्यारा ख्वाब ढूँढ़ रहे हैं।
बच्चे हँसे। लेकिन ख्वाब तो पूरा हो गया।
बड़े चौंके।
हाँ, दिन बीत चुका है, और ख्वाब पूरा हो चुका है। आप लोग सारा दिन ख्वाब ढूँढ़ते रहे और हमारा एक ही ख्वाब था एक दिन अपनी मर्जी से जीने का, वो पूरा हो गया। अब बंद करिए ढूँढ़ना-वूँढ़ना। समय बीत चुका है। तितलियाँ गायब हो गईं सब की सब। शहर में बस गाड़ियाँ ही दौड़ रही थीं फिर से।