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कविता

शहर लंदन

प्रतिभा कटियार


एक शहर बारिश की मुट्ठियों में
धूप का इंतजार बचाता है
थेम्स नदी की हथेलियों पे रखता है
शहर को सींचने की ताकीद
निहायत खूबसूरत पुल कहते हैं
पार मत करो मुझे, प्यार करो
कला दीर्घाओं और राजमहल के बाहर
लगता है कलाओं का जमघट
एक बच्ची फुलाती है बड़ा सा गुब्बारा
कई वहम के गुब्बारे फूटते भी हैं
सिपाही की अवज्ञा कर कुछ बच्चे
ट्राफलगर स्क्वायर के शेरो से लिपट जाते हैं
एक लड़की भरी भीड़ में लिपट जाती है प्रेमी से
और तोहफे में देती है गहरा नीला चुंबन
भीड़ उन्हें देखती नहीं, वो देखती है
कई रंगों में लिपटे लड़के के करतब
कहीं ओपेरा की धुन गूँजती है
तो कहीं उठती है आवाज ‘टू बी ऑर नौट टू बी...’
बिग बेन के ठीक सामने
खो जाता है समय का ख्याल
एक जिप्सी लड़का गिटार की धुन में खुद को झोंक देता है
कोई जोड़ा उसकी टोपी में रखता है कुछ सिक्के
खाली ‘बच्चा गाड़ी’ के सामने बिलखती औरत
किसी समाधि में लीन मालूम होती है
बारिश के भीतर बच जाता है कितना ही सूखा
और सूखा मन लगातार भीगता है डब्बे जैसी ट्रेनों में
दुनिया नाचती है राजनीती की ताल पर
शहर नाचता है अपनी ही धुन पर
बरसता आसमान क्या पढ़ पाता है सीला मन
या रास्ते ही भीगते हैं बारिश में?
गूगल की हाँडी में पकती हैं सलाहियतें
एक स्त्री सँभालती है ओवरकोट
कि तेज बारिश का अंदेशा दर्ज है कहीं
रास्ते गली वाले जुम्मन चाचा नहीं बताते
गूगल का जीपीएस बताता है
जो बताता है वो सही ही रास्ते
तो इस कदर भटकाव क्यों है
कोई जीपीएस मंजिलें भी बताता है क्या?
शहर की हथेली में लकीर कोई नहीं...
 


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