दिखाता है बड़ी बेशर्मी से
चाँद
अपने गह्वर
अपने उभार
अपनी चाँदनी की उजास
और कूद पड़ते हैं
बृहस्पति और शनि
अपने आसन से,
सीधी हो जाती है भृकुटि
राहु और केतु की !
लपकने को दौड़ पड़ते हैं दसों दिकपाल,
सभी ग्रह उसे गोद में उठा
आकाशगंगा की सैर कराने को
आतुर हो उठते हैं !
जलता-भुनता रहता है
सूरज -
अपनी ही आग में
आकाश में !