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कविता

पास होने का दुख

संजीव ठाकुर


बहुत अभागा हूँ
तुम्हारे पास हूँ
पास होने पर
तुमसे बोलना पड़ता है
तुम्हें छूना पड़ता है
तुम्हें क्या पता
तुम्हारे सामने हँसकर
अपने-आप को
यंत्रणा की कितनी मात्रा
पिलानी पड़ती है ?

दूर हो नहीं सकते हम
कुदरत की नादानी है
हमारे बीच एक ‘रिश्ता’ है
और हम सामाजिक प्राणी हैं !

संपूर्ण तिक्तता को समेटे
कितना घुटता हूँ
तुम्हारे पास होने पर
ना ही पूछो तो अच्छा...
 


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