इतर प्रेम कोई पाप नहीं है
चाह भरे दिल में
उसका पलना
केवल दैहिक ताप नहीं है
गलत नहीं उस खिड़की को गह लेना
जो घरनी की सूनी आँख बनी हो
नहीं बेतुका वहाँ बैठना
जहाँ ठिठक कर बैठी दिखे
प्रियतमा कोई उदास
वह सब पुनीत है
जितना इनमें बचा हुआ है प्रेय
होने को दाह
नहीं बुरा है वह चौर्य-भाव
जब खोजे कोई
उनके तन में
उनके मन में
यदि बची हुई हो
कहीं भी कोई राह
भले ही उस पर छाप पड़ी हो किसी राग की
या फिर जो ना चली गई हो
उतर कर उन राहों पर चलना
किसी किनारे हौले से
उस रस को भर लेना
भर देना
नहीं नारकीय अघ जैसा
ना शाप देव का
ना क्रोध ऋषि का
ना शब्द विरोधी मंत्र विरोधी
ना ही ऐसा कुछ है उसमें
जो हो शास्त्र-असम्मत लोक-असम्मत
मत पूछो आसमानों से
प्रेम कोई अजपा जाप नहीं है