शेर मांस ही खाता है यह ध्रुव-सत्य है इसे मानते थे सब पर इधर जंगल में हलचल-सी है गर्दन में जानवराधिकारों की दफ्तियाँ लटकाए रक्ताभ-भेड़िए उसके खिलाफ लामबंद हुए हैं शेर को जंगल छोड़ना ही पड़ेगा जंगल अब सेक्यूलर हो रहा है
हिंदी समय में सर्वेश सिंह की रचनाएँ