मैं तुम्हारे शब्दों की उँगली पकड़ कर चला जा रहा था बच्चे की तरह इधर-उधर देखता हँसता, खिलखिलाता अचानक एक दिन पता चला तुम्हारे शब्द तुम्हारे थे ही नहीं अब मेरे लिए निश्चिंत होना असंभव था और बड़ों की तरह व्यवहार करना जरूरी
हिंदी समय में अखिलेश्वर पांडेय की रचनाएँ