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कविता

संशय

अनुकृति शर्मा


तुम्हारे होंठों पर
उगे हैं प्रश्न
और मन में सनातन संशय,
धूप और फूल ज्यों
ये मंगलमय हैं।
तुम्हारे चौगिर्द
लहरती हैं स्मृतियाँ
और अतीत के अनबीते दुख
लोबान धूम ज्यों
ये पावनकारी हैं।
तुम्हारे शब्दों में
जो बजता है वेणु-नाद
काँपता है जिससे
मंत्रबिद्ध पवन,
शंकाओं से परे
वही सत्य है।
 


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