अब लिखो
जबकि श्रावण का
सुनील हरित उजीता
लिपा है पेड़ों तले
और सहसा फूटी हँसी-सा
दोंगरा इक
अभी-अभी बरस कर थमा है।
अब जबकि मुखरा श्यामा
अधीर कुरला रही है
नारिकेल-कुंज में
और पतफुदकी
पायल-सी झनझना रही है।
लिखो अब
जबकि अनाम गंध
उड़ रही है मन सी
और हवा की फूँक से
बज रही हैं वंशियाँ
दुर्दम्य उठती हूक को
अब ही लिखो।