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कहानी

खदेरूगंज का रूमांटिक ड्रामा

दुर्गेश सिंह


रावण जल चुका था, फिर भी लोगों के मन में हाहाकार मचा हुआ था। मेला अपने चरम पर था। बच्चे घुनघुने से लेकर हवाई जहाज तक का सौदा कर लेना चाह रहे थे और महिलाएँ इस अंदाज में अंर्तवस्त्रों के ठेले पर पिली पड़ी थीं मानों उम्र भर की जवानी आज ही मुट्ठी में कैद कर लेना चाहती हो। छोटे हलवाई काली जर्द पपड़ी वाली कराही में लपर-लपर गुड़ की जलेबियाँ छान रहा था। रह-रहकर वह बाएँ हाथ से पसीना पोंछ लेता था, इस प्रक्रिया में लकबाय चांस एकाध बूँद दाईं तरफ चू जाती तो कराही छन्न से कर उठती। दस साल का रमई गला फाड़-फाड़ बचपने की चीनी में भविष्य को भी जलेबी बनाकर बेच रहा था। बसंतू बाबू जितनी मूँगफली बेच नहीं चुके थे, उससे अधिक कउर चुके थे। पप्पू पनसारी की दुकान पर ग्राम परधान सिरपत धोबी बैठे नरेगा-वरेगा जैसे सरकारी मदों सेमिलने वाले पैसों की गैर-सरकारी तरीके से जुगत भिड़ा रहे थे। बरछी और कलऊ नामक दोनों बॉडीगार्ड सिरपत के पैरों में मुंडवत गिरे ऐसे लग रहे थे मानों दो घोंघे जमीन पर आमने-सामने हो। तभी रामलीला में राम का किरदार निभाने वाले लोकल आर्टिस्ट अशोक गुप्ता कुछ चीथड़े लपेटे हुए भीड़ को चीरते हुए निकले। पीछे की ओर भागते हुए कुछ बच्चे हनुमान की पूँछ की तरह लगे। देखते ही सिरपत के मुँह से पान की पीक निकलकर बरछी के थोबड़े पर चिपड़ गई जिसे उसने मुखामृत समझकर मस्तक से लगा लिया। अशोक गुप्ता के पीछे लंबे बालों वाले लेखक बुल्ला खाँ, गांधी छाप झोला कंधे पर और लंबा रजिस्टर उँगलियों में फँसाए निकले।

सिरपत ने पूछा - का भ बुल्ला जी।

बुल्ला - अरे, प्रधान अब हम का करें, सीन समझा रहे थे तब तक अशोक गुप्ता भाग निकले।

सिरपत - (वार्निंग देते हुए) आज मेला का आखिरी दिन है, रामलीला खत्म हो रहा है, कुछ दिन बाद होने वाले नाटक में बहुत भीड़ होनी है तनिक भी गड़बड़ी भई तो आपको घर की उड़द जांगर में डालनी पड़ेगी।

एक बात अउर हम सोच रहे हैं कि इस बार नाटक में थोड़ा रूमांस हो, त मजा आ जाए। (पीक फिर से थूकते हुए)।

बुल्ला - 'कफन करिया का' में।

सिरपत - हाँ।

बुल्ला - गरीब करिया की बीवी मर जाती है, उसके पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपनी पत्नी के लिए कफन खरीद सके। वह गाँव के हर घर जाकर भीख माँगता है कि उसे कफन खरीदने के लिए पैसे चाहिए। इसमें रूमांस कहाँ से आएगा।

सिरपत - ई कहानी तो पहले भी हम सुन चुके हैं। (गंभीर तरीके से सोचते हुए) - अरे भाई इ समय नाम नहीं याद आ रहा है लेकिन बड़े ही नामी लेखक थे। रिवालेशन कर दिए थे कहानी लिख-लिखकर। तो इसमें रूमांस डालिए। खैर, सुनो करिया वाला रोल कहीं अशोक गुप्ता को तो नहीं दिए हो।

बुल्ला - अरे, परधान उहै का तो रिहर्सल करा रहे थे कि उ भाग निकले। बोले सूट नहीं कर रहा रोल, नहीं करना।

सिरपत - दिमाग फिर गया है तुम्हरा मास्टर, अयोध्या नरेश श्री राम अगर घर-घर जाकर पैसा माँगेंगे तो पब्लिक दू मिनट में तुम्हारा पोस्टमार्टम कर देगी।

बुल्ला - परधान हम बहुत सोच के इ फैसला लिए हैं, इसके अलावा हमरे पास कोई आयडिया नहीं है जो अपनी जिंदगी बदल सकता है।

सिरपत - उ कैसे।

बुल्ला - पब्लिक अशोक गुप्ता को लेकर पगलाई रहती है बारहों महीने। बुढ़ए उनको रामचंद का अवतार मानकर राह चलते जय श्री राम कहते हैं। उनकी दुकान में भी जय श्री राम, राधे-सीता, हरे किशना लिखे गमछों और चुनरीका पॉवरफुल बिक्री होता रहता है बारहों महीने। यही नहीं उनका हगना-मूतना तक मुश्किल करे रहते हैं नई उमर के लवंडे। कहते हैं कि हे श्री राम बस एक ठो सीता दिलवा दीजिए। आप तो एक्सपर्ट हैं, हर सलिए धनुष तोड़ते हैं और लहा ले जाते हैं कमर में हाथ डालकर। खिसुआ त आंदोलने कर दिया है और कहा है कि इस बार नाटक में काम नहीं मिला तो धनुष टूटने पर रस्सी बम ना फाटी। अशोक गुप्ता को गरियाता भी है वह।

सिरपत - (पीक उगलते हुए) खिसुआ गरियाता है। (जोरदार ठहाका लगाते हैं)। का कहता है उ।

सिरपत के पीक उगलने और हँसने की प्रक्रिया को बरछी और कलऊ ऐसे मंत्रमुग्ध होकर देखते हैं जैसे कि ये दोनों ही अपने आप में विशिष्ट हों।

बुल्ला मास्टर - (शिकायत की मुद्रा में) नई उमर का लवंडा हऊ प्रधान उ। दू साल से जब-जब अशोक गुप्ता धनुष मंच पर तोड़ते हैं तब-तब प्राइमरी स्कूल में सुतली बम उहै फोड़त है। अब आपको तो पता है कि पूरे गाँव मा देसी बम बनाने की प्रक्रिया ओकरै खानदान को पता है। फ्रस्टिया गया है, एक दुपहरिया घर आकर कहै लगा कि सुना बुल्ला चचा, इ बार अगर रोल नहीं मिला तो कउनो धमाका ना होई। अशोक गुप्ता धनुष त जरूर तोड़िहैं लेकिन आवाज ना आई।

इतना कहने के साथ ही मास्टर बुल्ला सेंटीमेंटल हो गए और बोले - प्रधान, इहै नहीं, उ बोला कि और इ आवाज ऊपर वाले की लाठी वाली आवाज टाइप होई जवन लगे तो जरूर पर कुछ ना सुनाई देई।

सिरपत प्रधान अपने जीवन काल में बड़े ही कम अशुभ मौकों पर गंभीर हुए थे, खिसु प्रसंग ने उन्हें आज फिर से गंभीर कर दिया था। दिमाग में खुराफात सूझी तो बोले - ड्रामा रोमांटिक होगा मास्टर, खिसुआ को अगर हीरो बना दें तो कैसा रहेगा। हेरोईन कहीं मेले में हेरा जाएगी और उ ढूँढ़ता रहेगा। (सीना गच्च से फूलकर पेट के लेवल में आगया) अंत मे मिल जाएँगे दोनों।

उनको यह लगा कि बुल्ला कहीं मना न कर दें, ऐसा लिखने से तो उन्होंने कहा - वैसे मास्टर एक ठो बात पूछें बुरा तो नहीं मानोगे ना।

बुल्ला मास्टर - (बुरा मानने वाले मन के प्रभावी होने की दशा में मुख पर उदासीनता का मुखौटा लगाकर)

जी परधान, बोलिए।

सिरपत - (सिर खुजाते हुए ) कहानी कुछ ऐसी करिए कि खिसुआ हेरोईन को ढूँढ़ते हुए करिया के घर पहुँच जाएगा और एक दिन नहर किनारे वाले खेत के मेड़ पा घास छीलती हुई हेरोईन उसको मिल जाएगी। (चेहरे पर चमक आ गई थी) अंत में यही दोनों करिया के बुढ़ापे का सहारा बन जाएँगे।

बुल्ला मास्टर (लगभग पगलाने की अवस्था में) - अरे, का कह रहे हो परधान। पिछले एक साल में स्याही सूखने नहीं दिए हैं इसके चक्कर में। बीमार बीवी का भी ध्यान नहीं धरे। अब आप कह रहे हैं कि कहानी में रूमांस लाना होगा।

सिरपत - (हाथ ऊपर उठाते हुए) देखिए, नर्वस मत होइए मास्टर, बहुत कुछ नहीं थोड़ा बहुत होगा। पैसे की जरूरत हमहूँ को है और आपको भी। जेतना चंदा एकट्ठा होगा उतना ही फयदा होगा। परचा छप गया है, एक दिन का टाइम है आपके पास सोचके बताइगा। हो सके तो खिसु और उसकी प्रेमिका के बीच एक जर्बदस्त प्रेम प्रसंग का सीन भी लिख लीजिएगा। उस कंडेशन में हमको किसी और की मदद नहीं लेनी होगी।

बुल्ला मास्टर ने अपने झोले का टंगना मजबूती से कंधे के ऊपरी सिरे की ओर सरकाया। थूक की एक सूख चुकी पीक गटकी और एक हाथ उठाकर सिरपत परधान को नमस्ते किया। बहिनचो... नामक विशेषण उन्होंने पिछवाड़ा दिखाते हुए सिरपत के लिए छोड़ दिया। बरछी और कलऊ को पता होता कि सिरपत को उत्तेजित करने वाला कोई खजाना हवा में तिर रहा है तो वे तुरंत पप्पू पनसारी की दुकान पर इक्कीसवीं सदी का काकोरी कांड कर डालते।

मेले की भीड़ से पैदल ही अपनी साइकिल लेकर मास्टर बुल्ला निकले और बाजार खत्म होते तक निरंतर चलते हीरहे। मास्टर बुल्ला की यही एक प्रॉब्लम थी कि वे डिप्रेशन में नहर किनारे वाली देसी की दुकान पर अपनी सवारी रोक देते थे। उस दिन बुल्ला को मूड में देखकर पल्लेदार हजारी राम बहुत खुश हो गया। चिकट बेवड़ों को शाम से पिला-पिलाकर उसके दिमाग की माँ-बहन-बीवी सब हो गई थी। बुल्ला को देखते ही उसने दो राजाबाबू के खंभे अपने तकिए के नीचे दबा दिए और शाम सात बजे ही दुकान बंद करने की तैयारी पूरी कर ली।

बुल्ला ने भी अपनी साइकिल टेढ़ी कर 'आपका ध्यान किधर है, मधुशाला इधर है' वाले बोर्ड के सहारे खड़ी कर दी।

बुल्ला मास्टर नीम के नीचे एक लावारिस गुमटी से सटे कुएँ की जगत पर हताश बैठ गए। दिन भर की गर्मी खत्म हो रही थी लेकिन बुल्ला के दिमाग की गर्मी भरभरा कर बाहर निकल रही थी। पल्लेदार हजारी राम ने सफेद काँच के दो मटमैले गिलास बुल्ला के सामने रख दिए। राजाबाबू बुल्ला मास्टर का फेवरेट ब्रांड हुआ करता था। सबसे तेज बिलकुल खबरिया चैनल की तरह उसका नशा बुल्ला के दिल-दिमाग पर छा जाता था और सुध-बुध खोकर वे अपनी वाली पे उतर आते थे।

कुएँ की जगत पर झक्क सफेद चाँदनी में आमने-सामने बैठे हजारी और बुल्ला दो देवदूत लग रहे थे।

उनके बीच में दो गिलास, एक बोतल, पेपर पर बिखरी दालमोट, नीबू के कुछ फाँके और प्याज के टुकड़े ऐसे लग रहे थे मानो वे दुनिया को सुखी करने का कोई मंतर इन्हीं संसाधनों के आधार पर पढ़ने वाले हो। दूर से देखने वाला निश्चय ही हदस जाता। एक बार बुल्ला गिलास उठाते और तो दूसरी बार हजारी। चियर्स करने की अवस्था में पहला दूसरे के मुँह तक गिलास ले जाता और दूसरा पहले के मुँह तक। बीच में दोनों गिलास रखते और दालमोट को फैलाकर धरती की तरह गोल कर लेते। फिर उस पर नींबू गारते और प्याज छिड़कते, मानो धरती की खुशहाली के लिए हवन कर रहे हों।

हजारी - कहानी समझ गए, इ चूतिया सिरपतवा सब बदलने के चक्कर में है। पहले पंचायत भवन मा किराने का दुकान खोलवा दिया, तेल-चीनी अपने घर से बँटवा रहा है और अब रामलीला का भी अंत करने की तैयारी में है। सुरसा लीलैं एका।

बुल्ला - पूरा एक साल लगा दिए हैं, ड्रामा का कहानी लिखने में और उ बकचो... बोलता है कि कहानी में प्रेम प्रसंग डालो। (गिलास धम्म से नीचे रखते हुए) अरे घंट से प्रेम प्रसंग डालें। कउन प्रेम करता है आजकल किसी को। खुद साला खिसुआ की माँ को दिन-दहाड़े पटक लेता है अरहर के खेत में अउर बात करता है प्रेम प्रसंग की। अच्छे, जियावन, सरजू, मदेली, सेवा और सबका एकई साझा किस्सा है।

हजारी को लगा कि अब बुल्ला मूड में आ गए हैं और किसी भी पल उसके फैमिली लाइफ का भी सीटी स्कैन कियाजा सकता है।

हजारी - (बीच में ही टोंकते हुए) तो लिखिए ना भाई सिरपतवा के हिसाब से। पइसा काटता है क्या आपको। पिछला पंद्रह साल से रामलीला लिख रहे हो, क्या मिला। अरे आपको तो इ भी नहीं पता है कि पर्चा छप गया है आपके नाम से। गाँव भर में चपकवा और बँटवा रहा है - आजादी के साठ साल बाद खदेरूगंज के इतिहास में पहला थेटर ड्रामा। पहले हम सोचे कि वही पुराना ड्रामा फिर होगा लेकिन इहाँ तो सीन दूसरा है। आगे क्या लिखा है थामिए जरा बताता हूँ।

दो पेग के बाद अक्सर हजारी ऐसे ही तांडव पर उतर आते थे। दिन के उजाले और होश-हवास में वह जो काम नकर पाते थे, वह राजाबाबू की खुमारी में कर गुजरते थे।

बुल्ला मास्टर सरेंडर मोड में थे और हजारी ने दालमोट के नीचे दुबकी जा रही ड्रामा के विज्ञापन की पर्ची बाहर खींचली। उस पर लिखी दूसरी लाइन कुछ इस तरह थी कि खदेरूगंज रामलीला के मशहूर लेखक मास्टर बुल्ला की सरफरोश लेखनी से निकला 'कफन करिया का'। पहला थेटर ड्रामा जिसको देखकर आँसू की नदियाँ बह निकलेंगी। रामचंद का अविस्मरणीय किरदार निभाने वाले अशोक गुप्ता पहली बार गरीब करिया के रोल में। साथ ही नए प्रेमी जोड़े का प्रेम प्रसंग भी। महिलाओं और बच्चों के बैठने के लिए अलग पंडाल की व्यवस्था। टिकट दर-दस रुपये। पहले आइए और पहले पाइए। विशेष निगरानी के लिए लाउडस्पीकर और होम गार्ड्स की अतिरिक्त व्यवस्था। किरपा करके अपने बच्चों और बोरों का ध्यान रखें, खो जाने पर रामलीला नाट्य समिति और पंचायत खदेरूगंज की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

इतना कहने के साथ ही हजारी ने पर्ची मास्टर बुल्ला के हाथ में थमा दी। बुल्ला जब तक पर्ची निहारते उनकी लार टपककर पर्ची को गिला कर गई। अपने कुर्ते पर रगड़कर बुल्ला ने उसे सुखाना चाहा लेकिन तब तक उस पर्ची के चीथड़े उड़ चुके थे।

हजारी ने दोनों गिलासों को नाइंटी डिग्री एंगल पर जाकर निहारा तो पता चला कि जाम खाली हो चले थे। उन्होंने बुल्ला मास्टर का गिलास उठाकर उनकी नाक के पास सटा दिया तो बुल्ला ने जवाब दिया - हजारी बाबू, थोड़ा सबर अली का लो।

हजारी को समझ आ गया था कि बारी बुल्ला मास्टर की है।

बुल्ला - (लरजती आवाज में) अब समझ आया कि सिरपत प्रेम-प्रसंग क्यों डलवाना चाहता है नाटक में।

हजारी - (सहजता से) क्यों।

बुल्ला - क्योंकि बुल्ला मास्टर की लेखनी का टेस्ट लेना है उसे। अब हो चली है चला-चली की बेला। बुल्ला मास्टर की लेखनी में उ धार कहाँ। (पिछवाड़े का पिछला हिस्सा पीछे की तरफ शिफ्ट करते हुए)

ऐसा सिरपत को लगता होगा।

हजारी भी सीमेंट के बने चबूतरे पर एक हाथ सिर पर टिकाकर उर्ध्व लेट गए और बोले - पर मास्टर तुमको कोई यहाँ से खदेर नहीं सकता। खदेरूगंज का नाम खराब नहीं होने देना है मास्टर।

बुल्ला मास्टर की आँखें चटक चाँदनी में चाँद को निहारने लगी। बचपन में पहुँच चुके मास्टर को याद आया कि कैसे उनके गाँव के ही ठाकुर गुलजार सिंह और परताप सिंह ने गोरों की एक पलटन को गाँव से खदेर दिया था। तब से गाँव का नाम खदेरूगंज पड़ा और वहाँ के लोग हर साल कुछ न कुछ खदेरने लगे। कभी मलेरिया, कभी प्लेग, कभी सूखा, कभी बाढ़, कभी लकड़बग्घा तो कभी मुँहनोचवा, सब खदेर चुके थे यहाँ के लोग।

बुल्ला - हजारी, सब कुछ तियाग दिए, लिखने के चक्कर में। तड़पत विमली आज भी नाच उठती है आँखों में। सदर का डागडर कहेस, बरेस्ट कैंसर है। अरे हम सोचा (एक हाथ हवा में घुमाकर) प्लेग, हैजा, पोलियो, टायफायड, कालरा इहै बीमारी होती है। कैंसर का हुआ, हमको थोड़ा रिस्की लगा (एक गाल टेढ़ा करते हुए)। बुल्ला मास्टर ने अपनी जिंदगी में इतने रिहर्सल किए और करवाए थे कि उनकी पर्सनल बातें भी इमोशनल सीन की रिहर्सल जैसी लगती थी।

बुल्ला आगे बोले - फिर जब सरकारी से प्राइवेट में ले जाने को बोले तो हमको लगा अब क्लाइमेक्स का टाइम आ गया है बिमला रानी, मोरी बिमला रानी। इतने के साथ बुल्ला मास्टर चिंघाड़ने लगे।

हजारी ने उनका मुँह दबाकर जर्बदस्ती बंद करवाया वरना पवित्र नीम के पेड़ के नीचे दारू पीने के एवज में खदेरूगंज की छह सदस्यीय पंचायत फैसला करने बैठ जाती।

तो लिख के दे दीजिए सीन ना, हजारी बोला।

बुल्ला - हमारी खुद की जिंदगी मा एतना ट्रेजडी रहा है और हम आज तक लव सीन नहीं लिखे हैं।

हजारी - त एक बात कान में घुसेड़ ला बुल्ला मास्टर, एई बार ना लिखबा त अगली दाईं से रामलीला के पंडाल मा बोरा बिछाई के बैठबा।

राजाबाबू को बुल्ला ने पूरी तरह से अपनी गिलास में उड़ेल लिया।

हजारी - अरे, मास्टर दिमाग फिर गया है आपन, पानी कहाँ है अपने पास, एक बोतल लाए थे उहौ खत्म हो गया है।

बुल्ला (गिलास नीचे पटकते हुए) - त अब का सुच्चै दारू अंदर जाई।

आधी शराब उन्होंने हजारी के गिलास में डाल दिया।

हजारी (चबूतरे पर से कूदते हुए) - दबे पाँव चला मास्टर नहर की ओर, उहीं पानी मिली।

अपना-अपना गिलास हाथ में पकड़े बुल्ला और हजारी नहर की ओर चल पड़े। रात अपने शबाब पर थी, अब ये दोनों देवदूत नहर के पुलिए पर बैठकर किसी दैत्य से कम नहीं लग रहे थे।

राजा बाबू का रंग और नहर के पानी का रंग एक जैसा था, उन्होंने एक गिलास पानी नहर से निकाला और दारू के साथ मिक्स कर लिया। दोनों ने साथ में चियर्स किया, गिलास आपस में टकराने के बाद दोनों के होंठों तक पहुँच गए। करेजे में हलकी सी हूक उठी लेकिन तक तक सरकारी पानी से उनके अंतड़ियों की सिंचाई हो चुकी थी।

हजारी - पहले इ तो बताओ लव सीन अकेले खिसुआ थोड़ू न करेगा, केऊ लड़की भी तो चाहिए।

बुल्ला के दिमाग में सिरपत को नीचा दिखाने की आकांक्षा प्रबल हो चुकी थी और वे अब कुछ भी करके अपने अहम को संतुष्ट करना चाह रहे थे।

बुल्ला पुलिया से एकाएक उठ खड़े हुए बिलकुल हिंदुस्तानी छुटभैये नेताओं के अंदाज में और बोले - खिसुआ की प्रेमिका का किरदार निभाएगी नगीना।

नाम सुनते ही हजारी हिल गए। नशा काफूर हो गया।

हजारी (रिएक्ट करते हुए) - चढ़ गई है तुमको, घर जाकर सीन लिखो।

इतने के साथ ही हजारी ने अपनी साइकिल उठाई और भाग निकले, भागने की प्रक्रिया के बीच ही हजारी ने कहा - नगीना क सोचिहा, मत मास्टर। सिरपतवा बुढ़ौती खराब कई देई।

हजारी के जाने के बाद बुल्ला कुछ देर तक पुलिया पर बैठे रहे। नहर के पानी से जमकर मुँह धोने के बाद पैदल कुएँ की तरफ चल दिए जहाँ वे अपना झोला भूल गए थे। कुएँ तक पहुँचते-पहुँचते बुल्ला ने ड्रामा का लव सीन सोच लिया था। उन्होंने यह भी तय कर लिया था कि नगीना को काम करने के लिए सिरपत से कैसे बात करना होगा। जगत पर पहुँचकर उन्होंने अपना टेरीकाट का कुर्ता निकाल दिया, पसीने से तरबतर बुल्ला झोले और कुर्ते को सिरहाने दबाकर आकाश को ताकने लगे। तारों के बीच उन्हें बिमली की सूरत झिलमिलाती दिखी। बिमली खुश लग रही थी, उन्हें लगा कि वह उनसे बात करना चाह रही हो। बुल्ला बोले - का निहार रही हो।

बिमली - परशान हो, कपार दबा दें।

बुल्ला - परशान तो हम तबहूँ हुए थे जब तुमसे पूरे गाँव का खिलाफ जाकर बियाह किए थे।

बुल्ला खाँ-बिमली कुमारी का बियाह आसान तो न था ना। रामचंद्र ने हमको बचा लिया था, आज भी बचाते आए हैं। बुल्ला लगातार बोले जा रहे थे ऊपर की तरफ निहारते हुए)

बिमली - रामचंद तो आज भी तुम्हरे साथ हैं, तुम लिख सकते हो। प्रेम तो तुम हमसे भी किए थे।

बुल्ला मास्टर की आँखें मुँदने लगी थी और बिमली उनकी आँखों में पूरी तरह समा गई थी। भोरहरे नींद में ही बुल्ला मास्टर पसीना-पसीना होने लगे। नींद उचट गई और उनके दिमाग में चल रहा सीन अब कागज पर उतरने को व्याकुल हो उठा था।

उठते से ही उन्होंने अपना झोला टटोला, रजिस्टर और कलम लेकर लिखने बैठ गए। सुबह के सात बजे तक वे करिया के गाँव जाने के बाद की घटनाओं का विस्तार करते रहे ताकि खिसु और नगीना का प्रसंग उसमें जोड़ सकें।

सूरज देवता मुँह पर चमक रहे थे। बुल्ला ने अपने जीवन का पहला लव ड्रामा पूरा कर लिया था, अब बस मंजूरी के लिए उन्हें सिरपत परधान के पास जाना था। गाँव निपटान की प्रक्रिया में ही था कि इससे पहले बुल्ला सिरपत परधान के घर पहुँच चुके थे।

सिरपत ने बुल्ला को आते देख बरछी से कहा - जो बे, एक ठो कुर्सी त लेई आउ।

(सिरपत की तरफ देखते हुए) - आवा मास्टर, (बरछी की तरफ देखते हुए चिल्लाकर) एक ठो चाई लाना मास्टर के लिए।

बुल्ला - नाहीं मास्टर, चाय-वाय बाद में। लव सीन लिख लिए हैं, बस एक बार सुन लें तो रिहर्सल शुरू कर दिया जाए। समय बहुत कम बचा है।

सिरपत - (हँसते हुए), अरे एतना जल्दी, हम तो आपसे मजाक किए थे। खैर अब सुना ही दीजिए।

बुल्ला ने रजिस्टर निकालकर पूरी कहानी फिर से एक बार सिरपत धोबी को सुना दी। साथ ही यह भी बता दिए खिसु की प्रेमिका वाले रोल के लिए कोई लड़की ही चाहिए।

सिरपत एक बार फिर से सिर खुजा रहे थे और साथ ही बुल्ला की तरफ ऑप्शन वाली निगाहों से देख रहे थे।

बुल्ला तपाक से बोले - एक बार ड्रामा हिट भया न, तो लड़का और लड़की दूनू क फूचर ब्राइट बा परधान।

सिरपत ने दो-तीन मिनट के अंदर ही आंटी-भाभी टाइप्स के चार-पाँच नाम गिना दिए। बुल्ला ने इन सभी नामों को पहले से फिक्स की गई वजहों के आधार पर खारिज कर दिया। सिरपत एक बार फिर से गंभीर हो रहे थे आौर लगने लगा था कि कोई अशुभ घड़ी आ रही है।

हारकर सिरपत बोले - आप ही बताएँ मास्टर, किसको लें।

बुल्ला मास्टर के पाले में गेंद पहली बार आई और उन्होंने तुरंत ही नगीना के नाम का सुझाव दे डाला।

पहले तो सिरपत चकरा गए लेकिन बाद में बुल्ला से इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा - देखा, परधान एक तो आपकी बेटी और दूसरे आपके सानिध्य में पूरा ड्रामा होगा। (बुल्ला लगातार सिरपत की आँखों में आँख डालकर बोले जा रहे थे) - ड्रामा हिट हुआ तो बिटिया आज ब्लॉक, कल जिला और परसों स्टेट लेवल पर पहचान बनाई।

बुल्ला की जुबानी जादू का सिरपत पर असर बढ़ रहा था और सिरपत की गंभीरता नगीना में राजनीतिक विरासत की तलाश कर रही थी। अखबारों और टीवी चैनलों में उन्हें बदलते राजनीतिक दौर की बू तो पहले ही आ चुकी थी।

भरी दोपहर में अशोक गुप्ता और खिसु को बुलावा भेजा गया। रामलीला मंच पर ही ड्रामा करने की जगह मुकर्रर कर दी गई। मंच के पीछे दो कपड़ों के पर्दों को घेरकर रिहर्सल रूम बना दिया गया जहाँ मास्टर बुल्ला, खिसु और नगीना के अलावा किसी को आने की मंजूरी नहीं थी। सिरपत परधान की बेटी का ड्रामा में रोल होने की वजह से आस-पास के गाँवों में खदेरूगंज के लव ड्रामा की जोरदार चर्चा और आलोचना हुई। गाँव के लोग बीपीएल कार्ड, नरेगा, इंदिरा आवास, जवाहर रोजगार, लाडली बेटी, कन्या धन और हरित तालाब जैसी योजनाओं का लाभ न पाने के डर से सिरपत के खिलाफ नहीं बोलते थे, गाँव के बाहर के लोग बरछी और कलऊ के डर से। मास्टर बुल्ला कड़ी मेहनत करके खिसु और नगीना के प्रेम प्रसंग को जीवंत बनाने में लगे रहते।

सिरपत भी कभी-कभार दशा-दिशा देखने के लिए रिहर्सल रूम आ जाते थे।

अठारह का खिसु और पंद्रह की नगीना न चाहते थे और न ही प्रेमी-प्रेमिका बन पाते थे। फिर भी मास्टर बुल्ला हिम्मत ना हारते, दिन का खाना सिरपत के घर से वहीं मँगवा लेते थे। सिर खपा के वहीं पड़े रहते, चेहरे पर पिसी सुतही घिस-घिसकर नगीना और खिसु के चेहरे आसमानी चमकीले रंग के हो रहे थे।

रिहर्सल के पाँचवें दिन दोपहर में डेढ़ और पौने दो बजे के बीचोंबीच पहली बार खिसु और नगीना की निगाहें मिली थी। बुल्ला मास्टर अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे ऊँघ रहे थे। लंबा सा, पीले फूलों की छाप वाला फ्रॉक पहने नगीना नीलम नामक अभिनेत्री लग रही थी और हॉफ आस्तीन की शर्ट-चिपकी पतलून पहने खिसु गोविंदा नामक अभिनेता। दोनों ने एक दूसरे को दूर से ही चुंबन दिया, इतने में मास्टर बुल्ला उठ बैठे और रिहर्सल करने के आदेश दे दिए। एक घंटे में न जाने ऐसा क्या हुआ था कि बुल्ला मास्टर का लव सीन एकदम रियल सा हो चला था। एक बानगी कुछ ऐसी थी -

खिसु - तुम मेरे पास क्यों नहीं आती।

नगीना - छोड़ो, करिया चचा देख लेंगे। उनके ही पीठ पीछे हम ऐसा करेंगे। (नोट - खिसु ने कुछ ऐसा नहीं पकड़ा था जो नगीना उसे छोड़ने के लिए कह रही थी)

खिसु - हमको भाग चलना चाहिए। ये गाँव वाले हमारे प्यार को नहीं समझेंगे। मेरा कुछ सपना भी तो है, हम जी लेंगे जिंदगी।

नगीना - कैसे।

खिसु - तुम जिंदगी की बात करती हो, मैं सपनों की। तुम जिंदगी जी रही हो और मैं सपना देख रहा हूँ। हमारी जिंदगी भी तो वहीं से शुरू हुई थी जहाँ से हमने सपना देखा था।

इतना सुनते ही बुल्ला मास्टर बोल पड़े थे - शाबाश। बच्चों। उस दिन के रिहर्सल का सीन यहीं से कट हो जाता है।

बुल्ला मास्टर कुएँ पर बैठे हैं और हजारी पेग लगा रहे हैं। चाँद उतरा आया है और चाँदनी छिटकी हुई है।

कुछ पन्ने हाथ में पकड़े हुए वे बोलते हैं - बात साथ देने की नहीं थी, साथ निभाने की थी। मैं तो किसी का साथ ना दे पाया। अपना भी बड़ी मुश्किल से दे पा रहा हूँ।

इतना कहने के साथ ही मास्टर बुल्ला ने पहला पेग गटक लिया। हजारी ने भी पहला पेग गटकते हुए कहा - वाह मास्टर, छा गए। कउन से सीन का डाइलॉग हउ इ।

बुल्ला - खिसु और नगीना के जुदाई वाला सीन। मतलब यहीं से उनको बिछड़ना है।

आगे की कहानी ना हजारी ने पूछी और ना ही बुल्ला ने बताई।

हजारी और बुल्ला को राजा बाबू ने जैसे ही अपने आगोश में लिया वैसे ही आकाश में भी चाँदनी डूबने लगी। मानों कुछ बताना चाह रही हो, जल्दीबाजी का संकेत दे रही हो, क्या पता बेमौसम बरसात तो नहीं आने वाली थी।

सूरज सर पे आ गया था, बुल्ला को नींद में ही कोलाहल सुनाई दिया। आवाज सिरपत परधान के घर के तरफ से आ रही थी। आँख खोली तो बरछी और कलऊ सामने खड़े थे। हजारी और बुल्ला पीछे-पीछे सिरपत परधान के घर तक पहुँचे। गाँव की हिंदू बस्ती अलग उमड़ रही थी और मुस्लिम बस्ती अलग। छह सदस्यीय पंचायत में शब्बीर अली, पल्लू साईं, रेहान शेख के अलावा खुद सिरपत परधान, बड़कऊ दूबे और राम बचावन सिंह थे। मास्टर बुल्ला पर आरोप लगाया गया कि इन्होंने खिसुआ आतिशबाज को पहले उकसाया और फिर नगीना को भी ड्रामा में काम करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही हिंदु-मुस्लिम भाईचारे को भी उन्होंने भड़काने की कोशिश की है। इसी का नतीजा है कि दोनों आज रात गाँव छोड़ फरार हो गए। नगीना अपने साथ गहना-रुपया लेकर भागी है जबकि खिसुआ धनुष टूटने पर भड़ाम की आवाज निकालने वाले बम का नुस्खा लेकर फरार भया है। नया बम तो कोई भी बना सकता है लेकिन उस परंपरागत बम को बनाना आसान नहीं है। परधान सिरपत के साथ ही पूरी ग्राम पंचायत खदेरूगंज को इस फरारी प्रक्रिया से घोर नुकसान हुआ है। इस जघन्य कर्म की पूरी जिम्मेदारी मास्टर बुल्ला पर आती है, अतएव यह पंचायत उन्हें पाँच सालों के लिए गाँव बदर करती है। इस दौरान कुर्क की गई उनकी संपत्ति ग्राम पंचायत भवन में सुरक्षित रखी जाएगी।

सिरपत ने बुल्ला से पूछा - कुछ कहना चाहते हो अपनी सफाई मा मास्टर।

बुल्ला - मुजरिम सफाई नहीं देते परधान। आरोपी तो हमसे बिना कुछ पूछे ही बना दिया आप लोगों ने।

पंचायत खत्म हुई। बुल्ला के घर में एक बक्से, एक बिमली की फोटो और दो-पाँच बर्तनों के अलावा कुछ भी नहीं मिला। 'कफन करिया का' की पहली कहानी जो उन्होंने अशोक गुप्ता के लिए भिखारी के रोल को आधार बनाकर लिखी थी, उसकी पांडुलिपि भी ग्राम पंचायत खदेरूगंज ने जब्त कर ली थी।

बुल्ला अपना बिस्तर समेट उसी रात ग्राम पंचायत खदेरूगंज की सरहद से बाहर निकल पड़े। उनके साथ उनकी साइकिल भी थी। उसी पुरानी पुलिया पर वे फिर से बैठ गए।

बुल्ला ने नीले आसमान की ओर देखा, बिमली मुस्करा रही थी।

बुल्ला ने चुटकी लेते हुए कहा - बात साथ देने की नहीं थी, बात साथ निभाने की थी।

हजारी बोले - सठिया गए हो मास्टर और चारों तरफ राजा बाबू की खुशबू फैल गई।


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