अपने चेहरे उतार कर रख दो रात की इस काली चट्टान पर कपड़े भी ! अब घुस जाओ निर्वस्त्र स्वप्न और अंधकार से भरे भाषा के इस बीहड़ में कविता तक पहुँचने का बस यही एक रास्ता है।
हिंदी समय में मणि मोहन की रचनाएँ