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कविता

निर्वस्त्र

मणि मोहन


अपने चेहरे
उतार कर रख दो
रात की इस काली चट्टान पर

कपड़े भी !

अब घुस जाओ
निर्वस्त्र
स्वप्न और अंधकार से भरे
भाषा के इस बीहड़ में

कविता तक पहुँचने का
बस यही एक रास्ता है।
 


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